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________________ 74.8.15] महाका-पुष्फयंत-चिरइया महापुराण [133 5 हेला--कंदप्पं सुरूविणं णिएघि चित्तचोरं॥ का वि सकंकणं चारुहारदोरं ॥छ।। कवि जोयइ दिठ्ठिय मजलियइ गुरुयणि' सलज्जदरमउलियइ ! कवि चलिय कडक्खहि विवलियइ कवि वियसियाइ कवि विलुलियइ । काहि वि गय तुट्टिवि मेहलिय कवि मुच्छिय धरणीयलि घुलिय । लि पुलिया काहि बि रइजलझलक्क झलिय' कवि उरग्रलु पहणइ" झिंदुलिय। काइ वि थणजुयलउं पायडिउं काहि विपरिहाणु मत्ति पडिङ । क वि भणइ एहु' हलि दूउ जहिं केह उ सो होही रामु तहिं । सइ सीय भडारी वज्जमिय ण सइत्तणवित्ति अइक्कमिय। हलि एह वि पेच्छिवि पुरिसवरु जह कह व महारचं एइ घरु। पायग्गे जइ थणग्गु छिवह तंबोलु वि जइ उप्परि घिवइ । तो हङ सकयत्थी जगि जुवइ के वि पेम्मपरव्वस मूढमइ। अप्पाणु परु वि ण सच्चवइ' हा मुइय" मुइय जणवउ पवई। घत्ता--कामु हरंतु मणु पुरखरणारीसंधायहु ॥ बलश्यउच्छुधणु गउ भवणु विहीसणरायहु ।।४।। 10 चितचोर सुन्दर कामदेव को देखकर, कोई अपना कंगन और सुन्दर हारदोर देती है। कोई मुकुलित दृष्टि से देखती है, और गुरु जनों में लज्जा से थोड़ा मुकुलित करती है, कोई चंचल कटाक्षों से वक्र होती है, कोई विकसित करती है, कोई चंचल करती हैं; किसी की कटिमेखला टूट गई। कोई मूछित होकर धरती पर गिर गई। किसी की रतिजल की धारा बह निकली। कोई कामविह्वल हो अपने उर तल को पीटती है। किसी ने अपने स्तनयुगल को प्रकट कर दिया। किसी का परिधान शीघ्र गिर पड़ा। कोई कहती है, "हे सखी, जहाँ ऐसा दूत है, वहाँ राम कैसे होंगे? सती सीता देवी बन की बनी है, उनकी सतीत्व वृत्ति अतिक्रांत नहीं हो सकी। हे सखी, यह पुरुषवर देखने के लिए यदि किसी प्रकार मेरे घर आता है, और पैर के अग्र भाग से मेरे स्तन के अग्रभाग को छूता है, और यदि पान भी मेरे ऊपर फेंकता है, तो मैं विश्व में कृतार्थ युवती हूँगी। कोई महमति प्रेम के वशीभूत हो जाती है। वह अपने पराए को नहीं जानती। जनपद चिल्लाता है, "वह भरी मरी"। घत्ता-इस प्रकार पुरवर के नारी समूह के मन का हरण करता हुआ मुड़े हुए ईख के धनुष वाला कामदेव विभीषण राजा के घर जा पहुंचा। (8) 1.AP का वि हु देइ । 2. P सीरुहार । 3. A गुरुयण । 4. Pविवालियह 1 5. AP गलिय। 6. A पहरः। 7. हलि एहु । 8. AP सकियस्थी। 9. A सभरइ। 10. AP मुयइ मुयइ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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