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________________ 144] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण मयगिल्लगल्लु' मित्तत्तहेउ पच्छद्द" जं इच्छइ तं जि करमि रिवर'" महामेहक्खु देउ । अणात सुक्क काई सरमि । घत्ता-लइ" इच्छउं केर महुतणिय कुंजरू ढोइवि गिरिसरिसु ।। इभासिवि राएं पेसियउ सहुं तहु दूएं णिवपुरिसु ||2|| 3 किलकिलिपुरु पत्तउ दिट्टु बालि मंतें पत्तु भो सच्छचित्त तुति राय सुद्ध मणेण जेणाह्वस्बंधइ भग्गएण महुं भीएं उ' fafaधि वासु कंडण होइ पंडुरिय रेह जुज्झेसइ सीरि सिलिम्मुहेहि मग्गणउ धम्म गुणु मुवि जाइ इय चितिवि बोल्लिउ रायमंति देसड़ खयराहि असिपहारु [75. 2. 10 10 तेयाहिउ णं चंडसुमालि । करि ढोइवि करि पहुसमरं जत्त । ता भइ वालि संधु अणेण । कायरणरमग्गविलग्गएण । हा रामें पोसिउ पक्खु तासु । गूढ रिवित्ति एह । उत्तु वि जाणिज्जइ बुहेहि । सुग्गीवहु हणुयहु उवरि थाइ । भण्णइ ण देइ सो तुज्झु दंति । तोडेसइ पर्छ सुग्गीहरु । मेरे साथ है। मिश्रा के लिए वह नई से नीले इच्छा करेगा वह मैं करूँगा । इस समय मैं उसके उपकार की क्या याद करूँ ।. 5 10 महामेघनाथ का गज दे। बाद में जो वह पत्ता-लो गिरि के समान हाथी को लाकर मेरी आज्ञा को चाहो, यह कह कर राजा राम ने उस दूत के साथ अपना आदमी भेजा । (3) वह किल-किल नगर पहुँचा। उसने बालि से भेंट की। तेज से अधिक वह मानो सूर्य हो । मंत्री बोला- हे स्वच्छ चित्त तुम हाथी देकर राजा (राम) के साथ यात्रा करो, शुद्ध मन से राजा संतुष्ट होंगे। तब उसके द्वारा संस्तुत बालि बोला- संग्राम को धुरी से भागे हुए कायर मनुष्यों के मार्ग का अनुसरण करने वाले जिसने मुझसे डर कर किष्किंधा में निवास किया, राम ने उसके पक्ष का समर्थन किया । खुजली में सफेद रेखा होती है। जो मन से गूढ़ होते हैं, उनकी यही वृत्ति होती है। बलभद्र तीरों से लड़ेंगे। जो अनुक्त है, वह भी पंडितों के द्वारा जाना जाएगा । मग्गपड ( याचक और तीर ) धम्म (धर्म और धनुष ) गुण (गुण और डोरी) को छोड़कर जाएगा तथा सुग्रीव और हनुमान् के ऊपर स्थिर होगा। इस प्रकार के कथन को सुनकर राजमंत्री कहता है कि वह तुम्हें गजवर नहीं देगा. विद्याधर राजा असि प्रहार करेगा, वह तुम्हारे सुग्रीव हार को (सुग्रीव को धारण करने वाले अच्छी ग्रीवा धारण करने वाले ) । 9. A गिल्ला गिल्ल भित्तत्त। 10. AP करिवस वि महा 11. P पेच्छ 12. A लइ छ; P सई इन्छ । ( 3 ) 1. P पुरि। 2 A बंधें । 3. A क्रिउ । 4. P पंडुरिव 5. A मणवूडहं केरी; P मणमूडहं फेरी । 6. A अणुउसि ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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