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________________ 1001 महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण [73.4.11 ण वियाणहि कतहि तणिय वत्त रेणीलगीव घणरामवत्तः । णचंति दिद भणु कहि मि देवि इयरह कहि णच्चहि भाउ लेवि । रे कीर ण लज्जहि जंपमाणु जइ दिटुउं पई मुखहि पमाणु । घत्ता--णिरु विरहें शीणउ दासरहि देविहि अज्जु जि सुच्चहि ।। णीसेसजीवसंतावहर मेह दूअउ तुहं वच्चहि ।।4।। दुबई-अइउक्कठिएण धरणीसें सज्जणदिग्णजीययं ।। __ता दिनै मयच्छिथणकुकुमपिंजरू उत्तरीययं ॥छ॥ दीसइ वसग्गविलंबमाणु णं रिउ गयगयणंगणणिवाणु । णं दावइ कंतहि तणिय बट्ट इह दहमुहमारीयई पयट्ट । णं उबिभय सीयइस इवडाय तं लेप्पिणु किंकर शत्ति आय । आलिंगिउं रामें णीससेवि पुणु बाहुल्लई णयण ई पुसे वि। जंपिउं णिय सुंदरि खेयरेहि मायाविएहिं रणदुद्धरेहि । सहुं लक्खणेण संदेहि छूटु जामच्छड़ पर किंकज्जमूह । ताबायउ ठूयउ दसरहासु ते चित्तु पत्तु आलिहिउ तासु। उच्चाइवि तं सहसा सिरेण इय वाइउं देवें हलहरेण । 10 कांता का समाचार नहीं जानते ? हे सुन्दर स्मरणीय पूंछवाले मयूर बताओ, क्या तुमने देवी को कैसे नृत्य करते हुए देखा? अन्यथा तुम उसका भाव ग्रहण कर कसे नाच रहे हो? हे शुक, तू बोलता हुआ लजाता नहीं है, क्या तु मेरी पत्नी का पता जानता है ? पत्ता-पवित्र देवी के विरह में राम आज भी अत्यन्त क्षीण है। निःशेषजीवसतापहर हे मेघ, तुम दूत हो तुम बताओ। दुवई -अत्यन्त उत्कंठित धरणीश (राम) ने सज्जनों को जीवन देने वाला, मृगाक्षी (सीता)के स्तनकेशर से पीला उत्तरीय देखा। बाँस के अग्न भाग पर अवलम्बित वह ऐसा दिखाई देता है, मानो शत्रु के आकाश-प्रांगण ने का चिन्ह हो। मानो वह कांता का मार्ग बता रहा हो कि दशमख रावण के द्वारा वह यहाँ से ले जाई गई है। मानो सीता के सतीत्व की पताका उठी हुई हो । उसे अनुचर लेकर शीघ्र आए । राम ने नि:श्वास लेकर उसका आलिंगन किया और फिर बाँहों से अपने नेत्रों को पोंछ फर कहा-मायावी और अत्यन्त दुर्धर विद्याधरों द्वारा सोता ले जाई गई है । इस प्रकार जब राम लक्ष्मण के साथ संदेह में किंकर्तव्यविमूढ़ थे, तभी शीघ्र दशरथ राजा का दूत आया, और उसने उनका लिखा हुआ पत्र (सामने) रख दिया। उसे सहसा उठाकर देव बलभद्र राम 7.A वणरावमत्त; Pघगराम्पत्त; Tणराबमत्त अतिशमेन रमणीयपिच्छ । 8. AP दूर । (5) J. AP "पिजरि। 2. A णं रिज गयणगणि णिज्जमाण। 3. AP "मारीवय । 4. P रणि दुद्धरेहि।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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