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________________ 73, 6, 11] [101 महाका-पृष्फयंत-विरइयर महापुराणु दसरहु जिगचरणंभोयभसलु उवइसइ सुयह णियदेहकुसलु । मई दिवडं सिविणउं यविलासु हिय राहुं" रोहिणि ससहासु । पत्ता-एक्कल्लउ ससि पहलि भमइ अवलोइवि अवहारि ।। वज्जरिउं पहाइ पुरोहियह तेण चि मज्म वियारिज 1511 दुवई--जो दिट्ठ विज्ञप्पु सो रावणुजा णिति १ई विलोइया ।। रोहिणि तुहिणकिरणविच्छोइय सा तुह सुविओइया ॥छ।। परमत्थें जाणसु राय सीय अज्जु जि खरिदें घरहु णीय । जा हिप्पइ सा' पुणरवि णिरुत्त ता किज्जइ णियदेहहु पयत्त । जे चक्कवट्टि पालइ सजीव भरहंतरालि छप्पण्ण दीव । तहि सायरि लंकादीबु अस्थि ___ अण्णु वि तिकडु गिरि मणिगभत्थि । पुरि लेक राउ दहवयणु णाम णिय तेण सीय रामाहिराम । आयण्णिवि विसरिसविसम बत्त । ते बे वि भरह सत्तुहण पत्त। हिंसंततुरय गज्जेतणाय सामंत सुहड दसदिसिहि आय। आवेप्पिणु तणयासोक्खहेंउ ससुरेण णिहालिउ रामएउ। 10 दुम्मणु जोइवि रिउमणेण गलगजिउ तेत्थु जणदणेण। ने सिरे से उसे पढ़ा- "जिनबर के चरणकमलों का भ्रमर राजा दशरथ पुत्रों को अपनी देह की कुशलता का आदेश करता है। मैंने स्वप्न में देखा कि राहु द्वारा चन्द्रमा की हतविलास रोहिणी का अपहरण किया गया है। घत्ता-अकेला चन्द्रमा आकाश में परिभ्रमण करता है, यह देखकर मैंने समझ लिया और सवेरे पुरोहित से कहा । उसने मुझे बताया तुमने जो राह देखा है, वह रावण है और जो तुमने रात्रि में चन्द्रमा से वियुक्त रोहिणी को देखा है, वह तुम्हारे पुत्र से वियुक्त सीता है। हे राजन्, तुम इसे परमार्थ जानो कि आज ही वह विद्याधर के द्वारा घर ले जाई गई है। यदि उसे फिर से वापस लाना है तो निश्चय ही अपनी देह से प्रयत्न करना चाहिए। चक्रवर्ती जो भरतक्षेत्र में जीव सहित छप्पन द्वीपों का परिपालन करता है उसके समुद्र में लंका द्वीप है। और भी त्रिकूट मणि किरण आदि द्वीप हैं । लंका नगरी में राजा रावण है, उसके द्वारा स्त्रियों में सुन्दर सीता का अपहरण किया गया है । यह असमान विषतुल्य बात सुनकर भरत और शत्रुघ्न दोनों वहाँ पहुँचे। हिनहिनाते हुएघाड़े, गरजते हुए हाथी, सामंत और सुभट दसों दिशाओं से आये। पुत्रो के सुख के कारणभूत राम देव से ससुर ने भी आकर भेंट की। उन्हें दुर्मन देखकर शत्र का मर्दन करनेवाला लक्ष्मण एकदम परज उठा। 5. AP जिणकमलंभोय। 6.A राहें।7. AP विधारिमर्ड। (6) 1. A सो। 2. A जो। 3. उद्धयकेसरु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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