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________________ 11. 20, 2] महाका-पु-फयंत-बिरइयउ महापुराणु [81 तं णिसुणिवि बोल्लइ मायारी ह मायरि वणवालहु केरी। तुम्हिहि परभवि जं व चिष्णउं जेणेहडं जायउ लायण्णउं । लखा जेण णाह हलहररि जेण लच्छि एहो सवसुंधरि। तं मझु वि उवइसह वइत्तणु साहमि सवसा' हं वि जुवइत्तणु। ता तं सीयइ झत्ति दुगुछिउं महिलत्तणु कि किज्जइ कुच्छिउँ । रयसलवासरि चंडालत्तणु णउ पावइ णियवंसपहुत्तणु । अपणहि कुलि कत्थइ उप्पज्जइ वड्दती अण्णेण जि णिज्जइ। सयणधिमओयवसेण रुयंती बहलबाहबिंदुयई मुयंती। मंतिकज्जि' गउ कासु वि भावइ जा जीवइ ता परवस" जीवइ। दहउ दुठ्ठ दुगंध दुरासउ. आंधु बहिरु वाहिल्लु अभास । असहणु अणु कुडिलु जाणेश्वउं जो भत्तारु सो ज्जि माणेश्वउ। घत्ता–जइ सई चक्केसरु अब सुरेसरु तो वि अण्णु णरु जणणसमु ।। चितेव्वर णारिहि कुलगुणधारिहि णउ लंघेश्वज गोत्तकम् ।। 19॥ 15 20 विहवत्तणि पुणु सिरु मुंडेव्वळ अप्पउं तवचरणे दंडेब्वउ'। सख पिउ अभ्यासिसुर खखइसृप पइ' पुणु पोढत्तणि । - -- ---.. ... .. कहती है कि मैं वनपाल की माँ हूँ। तुम लोगों ने दूसरे जन्म में जो व्रत ग्रहण किया था, और जिसके लिए तुम लोगों को यह सौन्दर्य मिला, जिससे तुमने बलभद्र और नारायण जैसे पतियों को प्राप्त किया और जिससे इस भूमि सहित लक्ष्मी को प्राप्त किया है, उस नत का उपदेश तुम मसे दो. जिससे मैं इस स्वतंत्र यवतीत्वकोपा सके। तब सीता देवी ने उसे शीघ्र डॉटा कि कत्सित महिलापन से क्या करना। रजस्वला के दिनों में उसे चंडालत्व प्राप्त होता है, और वह वंश की प्रभुता को नहीं पा सकती। किसी कुल में उत्पन्न होती है, और बड़ी होने पर किसी दूसरे कुल के द्वारा जाई जाती है, स्वजनों के वियोग के वश से रोती हुई तथा प्रचुर वाष्प बिंदुओं को बहाती हुई । मंत्रणा के समय वह (नारी) किसी को अच्छी नहीं लगती। वह जब तक जीती है, तब तक परवश जीती है। चाहे वह दुर्भग दुष्ट दुर्गन्ध और दुराशयी, अंधा बहा रोगी और गूंगा, असहनशील, निर्धन और कुटिल जाना जाए जो पति है, उसे पति ही माना जाना चाहिए। ___ घसा-यदि वह स्वयं चक्रवर्ती हो अथवा इन्द्र, तो भी कुलगुणों को धारण करने वाली स्त्रियों के द्वारा पर पुरुषों को पिता के समान माना जाना चाहिए। उन्हें अपने गोत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। (20) विधवापन में उन्हें अपना सिर मुंडवा लेना चाहिए, और स्वयं तपश्चरण से दंडित करना चाहिए। अत्यन्त बचपन में पिता रक्षा करता है, प्रौढ़ काल में स्त्री की रक्षा पति करता है, 2. P भासइ । 3. AP वउ । 4. AP रामसामि' 5. A मंतकज्जि। 6. P परवसि ।। (20) 1. A डंडेवउ । 2. A अच्छतसिसुत्तणि । 3. AP तिय । 4. AP पुणु पइ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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