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________________ [17 5 21. 15. 15) महाका-पुरफयंत-बिरइयउ महापुराणु 15 का वि कुंदकुसुमई णियदंतहिं जोयइ दप्पणि समउ फुरतहिं। बउल परिक्खइ णियतणुगंधे बिंबीहलु अहरहु संबंधे। कवि फुल्लिउ साहारु णिरिक्खाइ बाली हरिसाहारणु कंखइ। जंपमाणु णवकलियइ मत्तउ घरसंतागंभुणइस इसउ। धरिउ ताइ रूसिवि मणदूसउ अग्गिवण्णु जायउ मुहि पूसउ। का वि उच्छुकरयल सुहकारिणि । णावद विसमसरासणधारिणि । का वि फुल्लमालउ संचार सह सरपंतिउणं दक्खालइ। का वि पलासपसूयई वीणाइ केकयतणयहु पाहुडु आणइ । णिजई रत्तई कुडिलई तिखई। णाइ वसंतमईदहु णक्खई। काइ वि कोइल कसण णिरिक्खिय पुच्छिय अवरइ विहसिवि अक्खिय। संपहि एह वि बोल्लणसीली जणविरहाणलधूमें काली। एयहि सद्द, महुरु महुरउ पुसु दोहि मि हम्मइ पवसिउ माणुसु । जइ महुँ लक्खणु अज्जु रमेसइ ता हलि कलपलवि" सुहृ देसइ। धत्ता-लयमंडव माणिवि कील समाणिवि कामभोयसंपण्णरइ ।। Q' करिव करिणिहि सहुं णियपरिणिहि सरि पइसति णराहिवइ ।।15।। 10 ... (15) कोई दर्पण में चमकते हुए अपने दांतों के साथ कुद पुष्पों को देखती है। अपनी देहगंध से मौलश्री पप की ओर अधरों के संबंध से बिम्बाफल की परीक्षा करती है। कोई फले हए सहकार वृक्ष को देखती है, और बाला वासुदेव के साथ बाइयुद्ध चाहती है । नवकलियों से मतवाला और बोलता हुआ निष्कपट शुक वियोग दुःख को कुछ भी नहीं मानता। मन को कुपित करनेवाले उसे उसने कसकर पकड़ लिया, इसीसे वह (शुक) मुख में (चोंच में) लाल रंग का हो गया। कोई शुभ करनेवाली, हाथ में इक्षुदंड लिये हुए ऐसी प्रतीत होती है, मानो विधम धनुष को धारण किये हुए हो। कोई पुष्पमाला का इस प्रकार संचार करती है, मानो कामदेव तीरों की पंक्तियाँ दिखा रहा हो। कोई पलाश पुष्पों को इकट्ठा करती है, और लक्ष्मण के लिए उपहार में देती है । स्निग्ध लाल कटिल और तीखे वे ऐसे मालम होते थे, मानो बसंत रूपी सिंह को नख हो कोई काली कोयल को देखती है और पूछती है। दूसरी हराकर उत्तर देती है कि लोगों के विरहानल के धुएँ से काली यह इस समय भी बोल रही है । इसका मीठा शब्द, मधुर शुक दोनों ही प्रवासियों के मानस को आहत करते हैं। यदि आज मुझ से लक्ष्मण रमण करता है तो कोयल का यह प्रलाप मुझे सुख देता है। पत्ता लतामंडप का उपभोग कर क्रीडा को मानकर जिसने कामभोग में अपनी रति पर्ण कर ली है ऐसा राजा अपनी हथिनियों के साथ सरोवर में इस प्रकार प्रवेश करता है, मानो कविवर अपनी स्त्रियों के साथ प्रवेश कर रहा हो।। (15) 1A बबलु । 2. Krrecord a p: अबवा हरियासायण चुम्बनम् । 2. AP मुहि जायउ । 3.AP Q विममसरसरा" 4. A °धोरिणि। 5.AP संचालह। 6. AP सर। 7.A केकइसणयह P केइयतणयह । 8. A अच्छिय अंबद्द विहसिय अक्खिय; P अन्छिय अबरइ विहसिवि अविषय। 9.P एह जि । 10. AP बोलण। 11. AP मड़। 12.A कललवियर्ड। 13. P omits णं ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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