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________________ 781 महाकवि पुष्पबन्त विरचित महापुराण [71.16.1 16 सीयापंजलिपाणियसित्तहु पं दप्पणयलि पुण्णपवित्तहु ।। कीमत्र राहु नमिलीलप्पल सोहइ णं छणचंदडु मयमलु। कसणे हरिणा का वि महासह सित्ती णं मेहेण वणासइ। णं रोमावलिअंकुर मेल्लई। मुहकमलेण णाई पप्फुल्लइ। कवि घणथणफलसंपय दावइ सुंदरि वेरिल अणंगहु णावइ । सिनिय सिंचिय हसइ सलीलडं उच्छलतकप्पूरकणाल। काहि वि पियकरजलविच्छलियहि सत्तजाल तुटलं कंचलियहि । अल्लउ' परिहणु दलिउ विहाविउ लज्जइ सलिलि अंगु रिहक्काविउं । काइ वि महुमहकतिइ कालिउ रत्त७ सयदलु कण्हु' णिहालिउँ । सहियहु दसिवि कहिविर वियप्पिङ कण्णालग्गइ काइ विपि । 10 सिंचहि ललिय एह पोमावइ विरहिणि जेण भडारा जीवइ । कुंकुमपिंडउ एपहि पल्लहि एह देव बच्छयलें पेल्लहि। पत्ता-तं सुणिवि कुमार माणवसारें एक्क धरिय चीरंचलइ ।। __ अण्णेक्कहि जंतें दरविहस्तें मुक्कउं सलिलु थणत्थलइ ॥ 16 ।। 15 (16) सीता की अंजलियों के पानी से सींचा गया नील कमल पुण्य से पवित्र राम के उर पर ऐसा प्रतीत होता है, मानो दर्पणतल में मृग से लांछित पूर्ण चन्द्र शोभित हो । श्याम नारायण (लक्ष्मण) ने किसी महासती को इस प्रकार सींच दिया, मानो मेघ ने वनस्पती को सींच दिया हो, मानो वह (नाभि का) रोमावली रूपी अंकुर को छोड़ रहा हो, मानो वह मुखकमल से खिल गई हो। कोई सघन स्तन रूपी फलसंपदा को दिखाती है, जैसे कामदेव की सुन्दर लता हो । बार-बार सींचे जाने पर वह, जिसमें कपूर के कण उछल रहे हैं, ऐसे लीलापूर्वक हँसती है। प्रिय के हाथों से नहलाई गयी किसी की चोली का सूत्र जाल टूट जाता है, शिथिल गीला वस्त्र गिर जाता है, वह लजा जाती है, और पानी में अपना अंग छिपाती है। कोई लक्ष्मण की कान्ति से श्याम रक्त कमल को काला देखती है, सखियों को दिखाकर अपना विचार बताती है । कोई कानों से लगकर कहती है, हे ललिते ! इसे सींचो यह पद्मावती है। जिससे यह आदरणीया विरहिणी जीवित रह सके । इसे केशर का लेप दो। हे देव, इसे वक्षस्थल पर दबाओ। धत्ता-यह सुनकर मानवश्रेष्ठ कुमार ने एक को वस्त्र के अंचल से पकड़ लिया तया एक और दूसरी के स्तनों पर थोड़ा-थोड़ा मुसकाते हुए उसने जलयंत्र से जल छोड़ा। (16) I. AP पाणियपंजलि"। 2. A छणयंदहु; P छणईदहु। 3. AP पफुल्लइ । 4. AP पुलए; K records a p: पुलएं 5. A पहसिउ; ल्हसिन । 6. AF किण्ह। 7. A कहव। 8. AP एहसलिय । 9. A जेम भडारा गीवह।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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