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महापुराण
घत्ता
- अहणिसु कयसेवहं च विहदेवहं देविहिं संखण दीसइ || संखेजतिरिक्खहं इच्छियसोक्खहं धम्मु अधम्भु' वि भासइ ||१४||
मह विहरिवि भवियतिमिरु लुहिवि तर्हि दोणि पक्ख तणुचाउ किउ traft ofग्गfa yoवहं तणउं बद्धाहिं पुन्वहं विताई
मासम्म पहिलइ पक्खि सिइ णियजम्मरिक्खि संभाइयउ छेtल्लs सुकझाणु धरिवि पुग्गल परिणामहु णवणवहु ठि अट्टमपुर्हहि अट्ठगुणु सुरमुक्ककुसुमरयमहमहिउ as वीयरायरायडु ललिउ
लोएहिं पवित्त पावरहिय
[ ४०. १४. १२
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मेहु सिहरु समारुहबि । रिसिह सहुं षडिमाइ थिउ । चोरिणउं लक्खु गउ । लक्खाई सहि अणुहुत्ताई । छट्ठइ दिणि मज्झण्हइ ल्हसिइ । अवि घाइचक्कु विघाइयउ । किरियाविच्छित्ति झत्ति करिवि । TB मुक्कड संभवु संभवहु । महुं पसियउ णिक्कलु णाणतणु । Craft धधू महिउ । affitosमणिसि हिजलिउ । अहं भूइ सीसें गहिय ।
घत्ता - दिन-रात सेवा करनेवाले देवों और देवियोंकी संख्या दिखाई नहीं देती । सुखको चाहनेवाले उसमें संख्यात तिथंच थे। वह धर्म-अधर्मका कथन करते हैं ||१४||
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धरतीपर विहार कर, भव्य लोगोंके अन्धकारको दूर कर सम्मेदशिखर पर्वतपर आरूढ़ होकर उन्होंने वहीं दो पक्ष तकके लिए एक हजार मुनियोंके साथ प्रतिमायोग धारण कर लिया । दीक्षा समय से लेकर चौदह वर्ष कम एक लाख पूर्व वर्ष बीतनेपर अपनी बँधी हुई आयुके साठ लाख पूर्व वर्ष भोगकर छोड़ दिये। चैत्र माह के शुक्लपक्षको छठोके दिन मध्याह्न होनेपर अपने जन्मनक्षत्र में सम्भावित चार घातिया कर्मोंका नाश कर दिया । छेदक शुक्लध्यान धारण कर, शीघ्र सूक्ष्म क्रिया विप्रतिपत्ति कर, उत्पन्न होनेवाले नये-नये पुद्गल परमाणुओंसे मुक्त होकर सम्भवनाथ मोक्ष चले गये । आठ गुणोंसे युक्त वह, आठवीं भूमि ( सिद्ध शिला ) में जाकर स्थित हो गये । निष्पाप ज्ञानशरीर वह मुझपर प्रसन्न हों । देवोंके द्वारा मुक्त कुसुमांजलियों के परागसे महकते हुए, दीपों और धूपोंसे पूजित, वीतरागराजका सुन्दर शरीर, अग्नीन्द्रोंके द्वारा अपने मुकुटकी आगसे जला दिया गया। लोगोंने पवित्र, पाप रहित अहंतके शरीरकी भस्म अपने सिरपर ग्रहण की।
१२. AP अहम्मु वि हासइ ।
१५. १. A सिहरि । २. P रिसिसहसँ पडिमाजोएं ठिउ । ३. A चउदह; P बारह । ४ AP वित्ताइं । ५. AP अनुताई । ६. P इय घाई । ७. A परिमाणहु । ८. AP पुहविहि ।