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•४०. १४.११]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित झुणि साहइ जणजम्मंतरइं झुणि साहइ भूभुवणंतरई। झुणि साहइ मणुयदेवसुहई झुणि साहइणरतिरियदुहई । झुणि साहइ जीवरासिकुअई झुणि साहइ बंधमोक्खफलई। घत्ता-झुणि सुणिवि पबुद्धहं जाइविसुद्धहं णिग्गंथहं मउलियकरहं ।
जायउ गयगामिहि संभवसामिहि पंचुत्तरु सउ गणहरहं ॥१३॥
तहिं चारुसेणु पहिला भणिवि पुणु गणमुणि मेल्लिवि मुणि गणेवि । दोसहसई अवरु दिवड्दु सउ पुव्वंगंधरहं थिउ जिणिवि मउ । सयतिउ सलक्खु सिक्खुयमइहिं एक्कूणतीससहसई जइहिं । परमोहिणाणधारिहिं मियई छहसयई रंधसहसंकियई। पण्णारहसहसई केवलिहिं एक्कूणतीस पसमियकलिहिं । सहसाई रिसिंदहं वसुसयई वेउव्वणरिद्धिहिं कयवयई। सउ संड्दु सहासइं तवसमई मणपज्जवधरिहिं धरियसमई। सउ सयह समउ सयवीसइइ जइवाइहिं संख करवि मइई। जार्यई बम्मीसरदारोह
दुइलक्खई एंव भडाराह। लक्खाई तिण्णि रइवजियह दहगुणिय तिणि सहसज्जियह। १०
सावियह लक्ख पंच जि भणमि सावयह तिणि ते हउं''मुणमि । निकलती है। वह ध्वनि जो जन्म-जन्मान्तरका कथन करती है, वह ध्वनि जो भू और भुवनान्तरोंका कथन करती है, ध्वनि जो मनुज और देवोंके सुखोंका कथन करती है, ध्वनि जो नरक और तियंचोंके दुःखोंका कथन करती है, ध्वनि जो जीवकुलराशिका कथन करती है, ध्वनि जो बन्ध और मोक्षफलोंका कथन करती है।
___घत्ता-ध्वनि सुनकर प्रबुद्ध हुए जातिसे शुद्ध निर्ग्रन्थ हाथ जोड़े हुए एक सो पांच गणधर गजगतिसे गमन करनेवाले सम्भव स्वामोके गणधर हुए ॥१३॥
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उनमें चारुसेनको पहला कहकर, फिर गणप्रमुखको छोड़कर मुनियोंको गिनाता हूँ। दो हजार एक सो पचास मदको जीतनेवाले पूर्वधारी थे। एक लाख उनतीस हजार तीन सौ शिक्षामतिवाले शिक्षक मुनि थे। नौ हजार छह सौ परम अवधिज्ञानके धारी थे। पन्द्रह हजार केवलज्ञानी थे। पापको नष्ट करनेवाले उन्नीस हजार आठ सौ विक्रिया ऋद्धिके धारक मुनि थे। बारह हजार एक सौ पचास शान्तिको धारण करनेवाले मनःपर्ययज्ञानी उनको सभामें थे। वादी मुनियोंको संख्या में बारह हजार कहता हूँ। इस प्रकार कामदेवको जीतनेवाले आदरणीय दो लाख मुनि थे। रतिसे रहित तीन लाख तोस हजार आर्यिकाएं थीं। पांच लाख श्राविकाएं थीं, तीन लाख श्रावक थे। उनको मैं जानता हूँ।
१०. P भुवणु अणंतरई । ११. A गरयतिरिय । १४. १. P भणमि । २. A गणिवि । ३. A सिक्खुवं; P सिक्खयं । ४. AP सद्ध । ५. P सयवीमइहु ।
६. AP करमि संख । ७. P महहु । ८. A जाया । ९. A°दारयहं । १०. A भडारयहं । ११. AP मुणमि । १२. AP भणमि ।