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- ४०. १४. १४ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
बत्ता - जिणणिव्वाणुच्छवि सच्छरु सविहवि सुरवइ भरहु पणश्चि । गणियेघर रंग सिंगारंगहु पुष्पदंतणियरचिउ || १५ ||
इय महापुराणे विसट्टि महापुरिस गुणालंकारे महाकइपुप्फयंतविरइए महामन्वमरहाणुमणिए महाकब्वे संभवणिग्वाणगमणं णाम चाकीसमो परिच्छेओ समत्तो ॥ ४० ॥
॥ संभवचरियं समत्तं ॥
धत्ता - जिन भगवान् के निर्वाण-उत्सव में, अप्सराओं और अपने वैभव के साथ कान्तिमान् इन्द्र खूब नाचा । फिर पुष्पदन्त (नक्षत्रों ) के समूहसे अर्चित वह श्रृंगारस्वरूप अपने घरकी रंगशाला के लिए चला गया ॥ १५॥
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामध्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में चालीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ४० ॥
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९. P णियघरि रंगहु वज्जियभंगहु । १०. AP omit संभवचरियं समत्तं ।
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