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परिचयारिमका भूमिका
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दृढ़रप और रामी सुतम्बाका पुत्र हुआ राजभर नगरमें । कमलमैं मरे हुए भौरेको देखकर, उसके मन में सांसारिक जीवन के प्रति घृणा हो गयी, उसने संन्यास ग्रहण कर लिया। तीर्थकरको सामान्य जीवन प्रक्रियामैं गुजरते हर सम्होंने निर्वाण प्राप्त किया। उनके निर्वाणके बाव, उपदेश देने और आचरण करने वालोंके अभावमें जैनधर्मको पूरे दिन देखने पड़े। इस अवसरपर भद्रिलपुण्णमें मेघरथ नामका राणा पर। वह उपयुक्त मादमियोंके लिए अपने धनका दान करता पाहता था, उसने मन्त्रियोंसे सलाह मांगी कि सबसे अच्छा धान क्या होगा । मन्त्रीने शास्त्रदानको दानका सर्वश्रेष्ठ रूप बताया । परन्तु राजाको यह सलाह पसन्द नहीं पायी। उसने मण्डलायन मन्त्रीसे पुछा, उसने राजासे कहा कि उसे ब्राह्मणोंको हाथी, पाय बादि दान देने चाहिए । राजाने सलाह मान ली जिसने केवल ब्राह्मणोंको सम्पन्न बनाया परन्तु उससे अच्छा नहीं
IL-श्रेयांसकी जीवनी के लिए वालिका देखिए।
L, LI, LII-2 वोन सन्धियाँ प्रथम बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवका वर्णन करती है। श्रेयांसके तीर्थकालमें राजगहमें राजा वसुभति और रानी बैनी थे। राजाका विशासभति नामका छोटा भाई था, उसको पल्लीका नाम लक्षमणा था । जैनीने वसुनदी पुत्रको अन्म दिया और लक्ष्मणाने विशालनन्दीको । एक दिन राजाने शरदके रादल आकाशमें विलीन होते हुए देखे, इससे राजाको संसारसे विरक्ति हो गयी । अपने छोटे भाई विशावभूतिको राज्य देकर उसने दीक्षा ग्रहण कर लो । जब विशाभूति राजा हुमा, तो विश्वमन्दी युवराज बन गया । एक दिन वह अपने प्रमद-उद्यान नन्दनवनमें गया। वह वही स्त्रियों के साथ थानन्द कर रहा था, विशाखनवीने उसे देख लिया। उसके मनमें उस उद्यानपर अधिकार करनेकी कल्पना आयी। बह अपने पिताके पास गया और उसने वह उद्यान उसे देने के लिए उमपर दबाव डाला। राजाने ऐसा करना स्वीकार कर लिया। उसने विश्वनन्दीको बुलाया और उससे राज्यका भार लेने के लिए कहा, उसने मागे बताया कि यह विद्रोह करनेवाली जातियों के दमन के लिए सीमान्त प्रवेशपर जाना चाहता है। विश्वनन्वीको यह विचार अच्छा नहीं लगा कि उसके चाचा लड़ने जायें, उसने उनसे कहा कि वह खुद इस कार्यके लिए जाना पसन्द करेगा । विशाखभूतिने विश्वनन्दीकी यह बात मान ली। विश्वनन्दी चला गया । विश्वनन्दीको अनुपस्थिति में विशाखभतिने नन्दनवन अपने पुत्र विशाखनन्दीके लिए दे दिया। अब विश्वनन्दी लौटा तो उसने पाया कि उद्यान विशास्त्रनन्दीके अधिकारमें है। विश्वनन्दी अपने चारा और मेरे भाईपर क्रुद्ध हो उठा। उसने भाई पर अाक्रमण करना चाहा, परन्तु यह वृक्षपर चढ़ गया, विश्वनन्दीने उसे विशाखनन्दी सहित उखाड़ दिया। उसने दोनोंको नष्ट करना चाहा, परन्तु विशासनन्दो पल्परके खम्भेपर चढ़ गया, विश्वनन्दीने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये । सब विशाखनन्दी अपना जीवन बचाने के लिए भागा । इस बीच विश्वनन्दीको तरस माया कि उसने अपने भाईपर आक्रमण किया, उसने जैनमुनि बननेका निश्चय कर लिया। विशावभूतिने भी विश्वनन्दीका अनुकरण करनेका निश्चय कर लिया। विशाखनम्दीको गद्दीपर स्थापित कर दिया । वनमें जाकर उसने तप किया। मरमेके बाद महाशुक्र स्वर्गमें उत्पन्न हुना। अब विशाखनन्धी एक शक्तिशाली शत्रुसे पराजित होकर राजषानीसे भागकर मथुरा गया और वहकि राजाका मन्त्री बन गया। एक दिन, मुनि विश्वनन्दी ( पचेरे भाई ) पर्याक लिए सहकपर जा रहे थे। हाल ही में व्यानेवाली जधान गायने उन्हें मार दिया जिससे वह गिर पड़े। महलकी छातसे विशालनादीने यह देखा और उसने मुनिका अपमान किया । मुनि इसे सहन नहीं कर सके, उन्होंने संकल्प किया कि अगले जम्ममें में इस अपमानका बदला लूंगा। मरकर वह महाशक्र स्वर्गमें देव हुए वहां उसके पाचा विशासभूति थे। कुछ समय बाद विशाखनन्दी घुणासे अभिभूत हो उठा। उसने तप किया और वह भी महाशुक्र स्वर्गमैं देव दया । अलका नगरी में राजा मयूरग्रीव और उसकी पत्नी नीलांजनप्रभा रहती थी। अगले जन्ममें विशालगन्दी उसका पुत्र हुमा-- अश्वग्रीवके नाम से । अपने दुश्मनों का सफाया कर, वह प्रतिवासुदेव तीन खम्ह घरतीका सम्राट