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महापुराण
xxXIX-पृध्दापुरमें राजा जयसेन था, पूर्व विवेहमें वत्सावठी उसकी राजधानी थी। उसके रविसेन और धृतिक्षेन-दो सुन्दर पुत्र थे। रतिसेन जल्दी मर गया। उसके पिता बहुत दुःखीहए। वह सांसारिक जीवनसे विरक्त हो गये। पुषको राज्य देकर, मन्त्री महामसके साथ मुनि बन गये। जयसेन और महारत दोनोंने तपस्या की। मृत्युके बाद वे स्वर्गमें महाबल और मणिकेतु नामक देव हए । इन दो वेवोंने आपसमें यह प्रतिज्ञा की कि जो पहले घरतीपर उत्पन्न होगा, उसे दूसरा उच्चधर्मकी शिक्षा देगा। इनमें से महाबल पहले परतीपर सगर नामका राजा हुआ साफेवमें । और समयके दौरान चक्रवर्ती राजा बन गया। एक बार चतुर्मुख मुनिको केबलज्ञान प्राप्त हुआ, उस अवसरपर देव वहाँ बाये । सगर भी वहां मुनिके प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करने के लिए गया। मणिकेतुने राजा सगरको वेखा। उस देव महादलको दिया गया अपना वचन याद आया। इसपर मणिकेतुने सगरको संसारको क्षणभंगुरता बतानेका प्रयास किया परन्तु उसने उसकी बातपर ध्यान नहीं दिया। मणिकेतु एक बार, सगरके प्रासादपर उसे समझाने आया, परन्तु इस बार भी वह असफल रहा। ठीक इसी समय, सगरके साठ हजार पुत्र, अपने पिताके पास पाये, और उनसे कुछ काम बतानेके लिए कहा-क्योंकि वे आलस्यों रहनेसे थक चुके हैं । सगरने पहले तो यह कहा कि ऐसा कोई काम करने के लिए नहीं है। क्योंकि चक्र ने प्रतापील उनके लिये उपाय करनी है। लेकिन नमको पुत्रोंने आग्रह किया--तो सगरने उनसे मन्दराचल जाने और प्रथम चक्रवर्ती भरत द्वारा निर्मित चौबीस तीर्थकरोंके मन्दिरॉकी सुरक्षाका प्रयम्ब करनेके लिए कहा । तब सगरके साठ हजार पुत्र अपने लक्ष्यपर गये। उन्होंने बहुत बड़ी खाई खोदी मन्दराचलके चारों ओर, और उसे गंगाके पानीसे भर दिया, जो मागलोफमें पहुंच गया । इस सवसरपर मणिकेतुने नई लीसे सगरको समझानेकी बात सोची। वह बहुत पनाग बन गया। उसने सगर के हजारों पुत्रों को क्रुद्ध दृष्टिसे देखा, और उन्हें भस्मीभूत कर दिया; केवल भीम और भगीरथ नौवित बच सके । सगरको विनाशको सूचना दी गयो, माह्मणने उसे संसारकी क्षणभंगुरताके बारेमें बताया । सगरमे भगीरपको गद्दी दी, और वह अपने पुत्र भीमके साथ मुनि हो गया । यह देखकर मणिकेतु बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सगरको बताया कि किस प्रकार उसने विद्याके बलसे उसके पुत्रोंको मृत कर दिया था, सब सब पुत्र जीवित कर दिये गये परन्तु उन्होंने भी अपने पिताका अनुगमन किया-और मुनि बन गये । काफी समय बीतनेपर भगीरप भी मुनि बन गयर, बोर मुक्त हुवा।
XL, XLI, XLII, XLIII, और XLIV–सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, परप्रभ और सुपापर्वको जीनियों के लिये, वालिका देखिए ।
XLV--यह सन्धि, माठवें तीर्घकर चन्द्रप्रभके पूर्वभवोंका वर्णन करती है। अपने इन पूर्वभवों चन्द्रप्रभुको मात्मा, परिश्रमी विदेहके सुगन्धदेश, श्रीषेणराजा और रानी श्रीकान्ताके दम्पतिका पुत्र हुई। पवित्र जीवन बिताते हुए, वह अगले अम्ममें श्रीधरदेव, फिर अजितसेन नामसे, अलकादेशको अयोध्यानगरीमें राजा अजितंजय और रानी मजितमा दम्पति को सन्तान (पुत्र) हई। यह अजितसेन चक्रवर्ती बना। उसका जीवन पवित्र था। अगले अम्ममें अम्त स्वर्गमें अहमेन्द्र हुई । अगले जन्ममें बह पानाम, यह पयप्रभके रूपमें उत्पन्न हुई, कनकप्रभ और कनकमालाके पुषके रूपमें, मंगलापती क्षेत्रके वस्तुसंचय नगरमें । अगले जन्ममें उसका जन्म वैजयन्त स्वर्ग में अहमेन्द्र के रूपमें जमा ।
XLVI -चन्द्रप्रभके जीवन के लिए तालिका देखिए । XLVII-सुविधि तीर्थकरके जीवन के लिए तालिका देखिए ।
XLVIII-सर्वे तीर्थकर शीतल, अपने पूर्व जोवनमें, सुसोमाके राजा पृथ्वीपाल थे। उसकी परलीका नाम वसन्तलक्ष्मी था, जो योवनकी प्राथमिकतामें ही मर गयी। उसको मृत्युसे प्रभावित हए राजाने संन्यास ग्रहण कर लिया। अगले जन्म में वह मरण स्वर्गमें देव हमा। अगले जन्ममें वह शीतलके नामसे राजा