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________________ -४० ६.४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित दीहरी माणं खणेणं खणं जित्तसत्तू सुए कम्मणिमुक्कए कत्ति पुण्णमासी भे पंचमे तउतइया तिणाणी समुप्पण्णओ आइया भावणा जोइसा विंतरा अंकुस भामिओ देहभाधारिणा चमाणा परे गायमाणा परे 'सट्टहासा परे गजमाणा परे छाइयासारसा सारसा सासुरा कोडिलक्खा गया तीस जइया घणं । पंत्तिए बीर्यतित्थंकरे दुक्कए । सोमेजोए दुजोयावलीणिग्गमे । इंदु इंदोरवी कंपिओ पण्णओ । सायरा भासुरा कप्पवासी सुरा ! चोदओ वारणो झत्ति जंभारिणा । धावमाना परे खेलमाणा ३ परे । सीहसद्दा परे संखसद्दा परे । "चित्तचारेहिं पत्तेहि पत्ता सुरा । ५ धत्ता - पुरु परियं चेष्पिणु घरु जाएप्पिणु जणणिहि देष्पिणु सिसु अवरु || पियर पुज्जेपिणु कर मउलेप्पिणु लइउ सुरिंदें तित्थयरु ||५|| ६ १४ जिणरुवरिद्धि पेच्छंतियइ तक्खणि तारायणु लंघियउ पविलोइय पंडुर पंडुसिले ताहि सईइ सई धारियउ सुरवरपंतिइ गच्छंतियइ | सुरसिहरिसिहरु आसंघियउ । सा खंड संकसमाण किलें । करिकंधराउ उत्तारियउ । ४७ १५ २० दिन रत्नवृष्टि की गयी । फिर बितशत्रुके पुत्र दूसरे तीर्थंकर ( अजितनाथ ) के कर्मसे निवृत्त होनेसे लेकर दीर्घ समुद्र प्रमाण तो करोड़ वर्ष समय बीतनेवर कार्तिक शुक्ला पूर्णमासीके दिन मृगशिरा नक्षत्र में दुर्योगावली से रहित सौम्ययोग में तीन ज्ञानधारी संम्भवनाथका जन्म हुआ । इन्द्र, इन्दु, सूर्य और नागराज कांप उठे । भवनवासो व्यन्तर, ज्योतिषदेव और भास्वर कल्पवासी देव आदरपूर्वक आये । शरीरकी कान्तिके धारक इन्द्रने अपना अंकुश घुमाया और शीघ्र अपने हाथीको प्रेरित किया। कोई नाच रहे थे, कोई गा रहे थे, कोई दौड़ रहे थे, कोई खेल रहे थे। कोई अट्टहास कर रहे थे, कोई गरज रहे थे। कोई सिंहगर्जना कर रहे थे। कोई शंख बजा रहा था । देवोंसे पृथ्वी और आकाश छा गये । उत्कृष्ट लक्ष्मीसे युक्त देवोंके साथ देव नाना प्रकारकी प्रवृत्तिवाले वाहनोंके साथ आये । け पत्ता - नगरको परिक्रमा कर घर जाकर, माताको दूसरा पुत्र देकर माता-पिताकी पूजा कर और हाथ जोड़कर जिनेन्द्र भगवान्‌को ले लिया गया ||५|| ६ जिनेन्द्रकी रूपऋद्धि देखतो हुई, देवताओंकी कतार जाती हुई, शीघ्र तारागणों को लांघती हुई सुमेरुपर्वत के शिखर पर पहुँचो । वहाँ सफेद पाण्डुक शिला देखी जो चन्द्रमाके खण्ड के समान थी । वहाँ उसने इन्द्राणीके साथ उन्हें उठा लिया और हाथीके कन्धेसे उन्हें उतारा। प्रभुको ७. AP पत्तए । ८. A बोइ तित्यंकरे । ९. A सोम्मजोर । १०. A इंदु इंदो रई कि पि उप्पण्णओ; ११. A देहभावारिणो; । देहसाधारिणा । १२. A P सहसु लक्खणहं वसु अहिय संपुष्णो । जंभारिणो । १३. AP खेल्लमाणा । १४. A सहसा । १५. P संखसद्दा परे पडहसद्दा परे । १६. A चित्तधारेहि; P चित्तयारेहि । ६. १. AP पंडुमिला। २. AP किला ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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