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अमरउलं चिर्य भिच्च उलं सो हे तुह दिण्णवरो
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महापुराण
[ ४०.४.१३
वजिगा धम्मकज्जं तओ पीणियं एत्थ सावत्थिरायस्स गेहे जिणो जाहि ताणं तुम होहि तोसायरो तामासाहि वाणाइमात्रेणं समालयं सूरत पह आगया गव्यसंमोहर्णत्थं इरी जाम छम्मास ता संपयालिंगणे फग्गुणे भासए सुकपक्खंतरे सिंधुरायारधारी सुद्देगुण्णओ रिदेहे थिओ सुद्वाचत्तए धम्मचंदस्स चंदिमाणंदिया णि माणिकरासी पुणो घत्तिया जिसका स्नानपीठ हैं, विशाल त्रिजग, जिसका घर है, हे कल्पाणि, वरोंको देनेवाला तुम्हारा ऐसा तीर्थंकरपुत्र होगा ।
धत्ता -- यह सुनकर कामरूपी पर्वतको घाटी वह सुन्दरी पुलकसे रोमांचित हो उठी मानो वसन्तके कानों को पोषित करनेवाली वार्ता प्रणयिनी कोयल पुलकित हो उठी हो ||४||
जस्स घरं तिजगं विडलं । होही तण ओ तित्थयैरो ।
धत्ता - तं णिसुणिवि सुंदरि सरमहिहरदरि रोमंचिय पुलएण हि । महुसमहु वत्तइ पोसियसोत्तइ पणइणि पियमाहविय जिई ||४||
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चितियं चितणिज्जं मेणे भावियं । जक्ख होही सुसेणासईणंदणो । वासवित्ताइरिद्धीप वित्तीयरो | hot asoi पट्टणं । सव्वकालंघियं सव्वसोक्खावहं । कति कित्ती दिही लच्छि बुद्धी हिरी । मम्मट्टी का राइणो पंगणे । पंचमे रिक्खए अट्टमवासरे । 'पुज्जगेव ज्जदेवो समोइण्णओ । वारिबिंदु राईविणीपत्तए ।
देवदेवेण मयापि बंदिया | दोस संखे हि पक्खेहिं णिव्वत्तिया ।
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उस अवसरपर ने चिन्तनीय कर्म की अपने मनमें चिन्ता और भावना की और यह धर्मकार्य यक्षसे कहा - 'हे यक्ष, श्रावस्तीके राजाके घर में जिन भगवान् सती सुषेणाके पुत्र होंगे, तुम वहाँ जाओ और सन्तोष उत्पन्न करनेवाली गृह-द्रव्य आदि मनोहर ऋद्धियाँ उत्पन्न करो ।' इस प्रकार आकाश के राजा ( इन्द्र ) की आज्ञा से कुबेरने रत्नोंकी वृष्टि और नगर की रचना वह नगर स्वर्णनिर्मित घरों और सूर्यकान्त मणियोंकी प्रभासे युक्त था । उसमें सब कालके वृक्ष थे और वह सर्व प्रकार के सुखोंका घर था। शीघ्र ही गर्भ संशोधन करनेवाली देवियाँ, कान्ति-कीर्तिधृति-लक्ष्मी बुद्धि और हो, इन्द्रकी आज्ञासे वहां आयीं। जब छह माह शेष रह गये तब सम्पत्तियों से
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लिगित राजा के आंगन में स्वर्णवृष्टि हुई। फागुन माह के शुक्ल पक्षमें अष्टमीको पाँचवें मृगशिरा नक्षत्र में गजका आकार धारण करनेवाला, सुखसे उन्नत पूर्वग्रैवेयकका देव अवतीर्ण हुआ और शुद्ध धातुवाले नारीरूपमें इस प्रकार स्थित हो गया मानो कमलिनी पत्रपर जलकण हो । जिनेन्द्रकी शोभासे आनन्दित होनेवाले माता-पिता की देवदेवने वन्दना की। फिर नौ महोने तक प्रति
६. A विय; Pपियं । ७. P तिहरी । ८P जह |
५. १. A मणे जाणियं; P कज्जयं जाणियं । २. AP मावड्ढणं । ३ A सूरयंतं पहं । ४. A सोहणत्ये इरी and gloss इरी त्वरिता; I इ दूरी; PK सिरी । ५. P कित्ति कंती | ६. P पुग्वगेवजं ।