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________________ -४०. ४. १२] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ता एत्तहि उववणि रमिXणेसुरि इह भरहखेत्ति सावत्थिपुरि । इक्खाउवंसु सुविसुद्धमइ हयसद ददु णामें पुहइवइ । धणुगुणसंधियपंचमसरहु । तहु घरणि सु सेण सेण सरहु । एकहिं दिणि णिसि पच्छिमपहरि सुहं सुत्ती देवि सवासहरि । पत्ता-सा सालंकारी सेण भडारी पइवय सोलह सुंदरई ।। __महिमंडलसामिणि मंथरगामिणि अवलोयइ सिविणंतरई ।।३।। करिणं वसहं केसरिणं लच्छि दामं चंदमिणं । झंसजुय कुंभजुयं च वरं सरवरममलिणमयरहरं । हरिवीढं देविंदघरं फणिभवणं फुडमणिणियरं । विप्फुलिंगपिंगलियणहं सिहिणं जलियं दोहे सिहं ।। इय जोइवि पीणस्थणिया पविउँद्धा सीमंतिणिया। सिसुमयणयणा पत्तलिया णीलप्पलदलसामलिया। अहिणववेल्लि व कोमलिया गहियाहरणा संचलिया। करि धरिवि सविलासिणियं कलहंसी विव हंसिणियं । पत्ता कता रायहरं सिहरोलंबियसलिलहरें। अवलोइवि पइमुहकमलं पुच्छह सत्था सिविणहलं । णियबुद्धीइ परिग्गहियं तेण वि तिस्सा तं कहियं । जस्स वसा तेलोक्कसिरी मजणवीढं मेरुगिरी। बीत गया, और उसको आयुका निश्चित भाग शेष रह गया, तब जिसमें देवता कोड़ा करते हैं, ऐसे उपवनवाले भरत क्षेत्रको श्रावस्ती नगरीमें इक्ष्वाकुवंश था। उसमें विशुद्धतम बुद्धि दृढ़रथ नामका राजा था। उसकी सुषेणा नामकी गृहिणी, मानो धनुषको डोरीपर पांच बाणोंका सन्धान करनेवाले कामदेवकी सेना थी। एक दिन रात्रिके अन्तिम प्रहरमें वह देवी अपने निवासगृहमें सुखसे सोयी हुई थी। महीमण्डलको स्वामिनी मन्द गतिवाली उसने स्वप्न-परम्परा देखी ।।३।। हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमाला, चन्द्र, मत्स्ययुगल, श्रेष्ठ कुम्भयुग्म, स्वच्छ सरोवर, सूर्य, समुद्र, सिंहासन, देवविमान, नागभवन, स्फुटमणिसमूह और स्फुलिंगोंसे आकाशको पीला बनानेवाली दीर्घ ज्वालाओंवाली प्रज्वलित आग। पोनस्तनोंवाली वह सोमन्तिनी यह देखकर जाग गयी। शिशुमगनयनी दुबली पतली नीलकमलदलके समान श्यामल, अभिनवलताके समान कोमल, और आभरण धारण करनेवाली वह चली। विलाससे युक्त कलहंसीके समान वह हंसिनीको अपने हाथमें धारण कर, वह कान्ता शिखरोंसे मेघगृहोंको सहारा देनेवाले राजभवन में पहुंची। अपने पतिका मुखरूपी कमल देखकर, स्वस्थ वह, स्वप्नोंका फल पूछती है। अपनी बुद्धिसे ज्ञात कर उसने भी उनका फल उसे बता दिया कि त्रिलोक लक्ष्मी, जिसके अधीन है, सुमेरुपर्वत, ४. A रमियसरि । ५. A इक्खागुवंस । ६.A हयसयदछु । ७. A ससेण । ८. A सुहसुत्ती; P सुहे सुत्तो । ४. १. AP सजुयलं कुंभजुयं पवरं । २. A दीयसिहं । ३. P विउद्धा । ४. P मयसिसु । ५. P रयणहरं ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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