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हरिआणि पहु वइसारियउ दिण्णलं दग्भासणु हियम लु दसदिसु सुँधूवु उच्चाइयउ दस दिसु थियै सुरवर कलसकर खीरोयखीरधाराधरहिं हारावलित डिफुरिएहिं किह
महापुराण
हरिणा परमेट्ठि पसाहियड सिहिणा तहु दीव बोहियउ fiories five refre जडबईणा जडमणु परिहरिउ वारण भडारड विज्जियउ इसाई भणिवि विउ सूरेण वि मोहंधारहरु
इंदे मंतु उच्चारियउ | दसदिसु परिधित्तु सँकुसुमजलु । दस दिसु चरुभाउ णिवेइयउ । दस दिसु वित्थरिय मुइंगसर । सिंचित जिनिंदु सलामरहिं । गज्जतिहिं मेहहिं मेरु जिह |
घत्ता -
- मंगलु गायंतिहि पुरउ णडंतिहिं दावियबहुरसभावहिं । णाणाविभासँह थोत्तसहासहिं जगगुरु संथुङ देवहि ||६||
थुइगिराहि आराहियउ । जडं जंपइ हउं पई साहियउ । विणण णएण जि संचरिउ । परमप्पड णियहियवइ धरिउ । रसें रयणहिं पुजियउ ।
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"सुसुहासूएं सुहाहि हविउ । सूरु जि णिज्झाइड परमपरु |
[ ४०.६.५०
सिंहासन पर बैठाया । इन्द्रने मन्त्रका उच्चारण किया । दर्भासन रखा, और दसों दिशाओं में मलका नाश करनेवाला कुसुमोंसे सुवासित जल फेंका। दसों दिशाओं में धूपका क्षेपण किया, दसों दिशाओं में चरुभाग निवेदित किया गया। हाथमें कलश लिये हुए देव दसों दिशाओं में खड़े हो गये । मृदंगका स्वर दसों दिशाओं में फैल गया । क्षीरसमुद्रके क्षोरकी धाराओं को धारण करनेवाले समस्त देवोंने जिनेन्द्रका इस प्रकार अभिषेक किया, जैसे हारावलीके समान बिजली से भास्वर गरजते हुए मेघों द्वारा सुमेरु पर्वतका अभिषेक किया गया हो ।
घत्ता - मंगलगान करते हुए, सामने नृत्य करते हुए, अनेक रसभावोंका प्रदर्शन करते हुए, देवोंने अनेक प्रकारकी भाषाओंवाले हजारों स्तोत्रोंसे विश्वगुरु की स्तुति की ||६||
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देवेन्द्र परमेष्ठको अलंकृत किया। पवित्र स्तुतियोंको वाणोसे उनको आराधना की । आग द्वारा उनका दीप प्रज्वलित किया गया। यम कहता है कि मैं तुम्हारे द्वारा जीत लिया गया हूँ । नैऋत्यदेव अपने रीछके वाहनसे उतर पड़ा। वह विनय और नयके साथ चला। जड़वादी (वरुण) ने जड़बुद्धि छोड़ दी। उसने परमात्माको अपने हृदय में धारण कर लिया। वायु ने आदरणीय पर पंखा झला, रत्नेशने रत्नोंसे उनकी पूजा की। ईशानने ईश कहकर नमन किया । चन्द्रमाने अमृत से स्नान करवाया। सूर्यने भो मोहान्धकारका नाश करनेवाले शूरवीर जिनका
३. P सुकुसुम । ४. A दसदिस सुधूमु; P दसदि सुषमुच्व । ५. AP सुरवर थिय । ६. A ● भाव; Pभावेहि । ७. A णाणा विहभासिहि; P णाणाविहिभासे हि ।
७. १. P सह । २. AP जडवयणा । ३. A ससुहासूई; P सुसुहासूई ।