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महापुराण
21.
दाम्यम अथवा श्रृंखलाथमकपर ध्यान दीजिए ओ पूरे कडवकर्मे है ।
22. 56 चरण-चक्र | 130. सरसलिलि रहंगसपाई अस्थि- वहाँ झोलमें सैकड़ों चक्रवाक परन्तु क्या वे पागल हाथी को पकड़ सकते हैं ।
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4 7 सिविणय तु सुडुं उस आदमीको सुख देता हुआ जो धनिक होते हुए भी नम्र और सदय हैं। ध्यान दीजिए कि शब्द सिविषयमें कारक चिह्न नहीं है ।
6 30 पूसरिक्खि छणसमिदिवस - इसमें भी माहके नामका उल्लेख नहीं है। गुणभद्र में मात्र माहा लेख है, परन्तु माघको पूर्णिमाको हम पुष्यनक्षत्र नहीं पा सकते इसलिए पौष माह होना चाहिए । क्या यह उत्तर और दक्षिणमें माह गिनने के अलग-अलग प्रकारोंके सन्देहके कारण ऐसा हुआ ?
14, 1a सयडंग ( शकटांग ) -- चक्र; चक्रवर्तीका शस्त्र ।
19.
10 बिसरिसजझलझलं वर्षाके गन्दे पानीका टपकना ।
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2. 5 जहि मणिरहिं ण दिडु पर्यगड - जहाँ रत्नोंकी किरणोंके कारण सूर्य दिखाई नहीं पड़ता या रस्न इतने अधिक और विशाल थे कि उन्होंने सूर्यको आच्छादित कर दिया ।
3. 58 कोडिसिला संचालणधवल - यह पंक्ति प्रथम वासुदेव त्रिपुष्ठके कार्यको सम्दर्भित करती है। कि जिसने कोटिशिलाको उठाया ।
4.
136 पाहुडगमनागमणपवाई- - मॅट की वस्तुओंके आने-जाने के प्रकार में – विजयभद्र और अमिततेजस के बीच । नैमित्तिक – ज्योतिषी ।
5. 96 इर्ड पब्वइढ सम हलीस-इलीस अर्थात् विजय बलदेव, जिन्होंने संसारका परित्याग कर दिया। मैं (ब्राह्मण ज्योतिषी भी ) उसके साथ साधु हो गया ।
6. 11a मामसमयि -मेरे ससुर के द्वारा दिया गया। यहाँ तक आधुनिक मराठीमें ससुरको मामा कहते हैं ।
8. 24 अमोहजो–ज्योतिषीका नाम 76 जेतुम्बरसि – जिससे तुम आपत्ति में सुरक्षित रह सकोगे ( जीवित रह सकोगे ) |
11. 38 विद्धणाई 'ए' 'पी' में पाठ है पिबंधणाई, जो सरल है। मुहावरेका अर्थ है तम्बुओंको बाँधनेवाले । 96 बार पारी । वार शब्दका पारी अर्थ मराठी में सुरक्षित है ।
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18. 5a हरिसुत — श्रीविजय, त्रिपृष्ठ वासुदेवका पुत्र ।
29.
10b समयसमयकल - जिसने समता या अपनी मजिसे कलहको शान्त कर दिया है ।
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1. 9a-28 इन पंक्तियों में अमिततेज द्वारा बर्जित विद्याओं को सूची है।
12. 6a दिल्लिदिलिए, हे बाले कन्या, देशी नाममाला देखिए ।