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अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद
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9. 40, 60 सुंदर तगुण -- मधुके द्वारा। 5ab6a विउससयणकय वयण विणुएण--- मधुके द्वारा जो सैकड़ों विज्ञानों के समान काव्य रचना में प्रशंसित है । 36 महमनुष चक्के चक्र द्वारा, जो मधुके मनु द्वारा प्रक्षिप्त था। महुमह— मधुमथन विष्णुका एक नाम है, हिन्दूपुराण विद्यायें ।
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इस सन्धिमें तीन व्यक्तियोंकी कथा है। ये हूँ — संजयन्स, मेद और भन्दर और उनके पूर्वभवोंको जीवनियोंकी भी कथा है। इनमें मेह और मन्दरकी जीवनियाँ प्रमुख है जो विमलनाथ के गणधर हैं । नोचे वी गयी सूची में इन दोनोंके पूर्वभव कालक्रमानुसार इस प्रकार हैं
(a ) संजयन्त - 1, सिंहसेन, 2. अशनिषोष हस्ती, 3. श्रीधरदेय 4. रश्मिवेग, 5. अकंप्रभ, 6. वज्रायुध, 7. सर्वार्थसिद्धि अहमिन्द्र 8 संजयन्त इस जोवनमें उसने तपस्या ग्रहण की। (b ) मेरु- 1, मधुरा, 2 रामदत्ता, 3. मास्करदेव, 4. श्रीधरा, 5. रत्नमाला, 7. आदित्यप्रभ, 8. मेरु, जो विमलनाथ के गणधर हैं ।
6. वीवभ्रम,
(c) मन्दर- 1. वारुणी 2. पूर्णचन्द्र, 3 वैडूर्यदेव, 4 यशोधरा, 5, रुचकप्रभ, 6. रत्नायुध, 7. विभीषण, 8. द्वितीय नारकी, 9 श्रीधामा, 10 ब्रह्मस्वर्गस्थित देव, 11. जयन्तधरणेन्द्र, 12. मन्दर, जो विमलके गणधर हैं ।
इस वर्णनात्मक वृत्तान्तमें दो और प्रमुख व्यक्तियों का वर्णन है । वे हैं (1) सत्योप या श्रीभूति, हिसेनका मन्त्री, जो अगन्धनसर्प, चमरमृग, कुक्कुटसर्प, नृटीपनाक अजगर, चतुर्यनारक, त्रसादिभव, सप्ततारक, सर्प, नारकी, मगचंग और विद्युदुष्ट्र ( 2 ) भनि व्यापारी जो सिंहचन्द्र, प्रीतिकरदेव और चक्रायुध ।
150 विज्जच से विकसित है तोड़ने और तब खाने के लिए 'टो' में इसका अर्थ खाना दिया है, जो दूसरा अर्थ हूं ।
9.
14.
15.
18.
10 देवाय
11 णत्रि एव बोगीत और मुद्रिका ।
14 णावर वारुणिपुरा
समान ।
देश जो परवतो दूसरे में मेह बना ।
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6a तूलिहि- सुतसे बना गद्दा
40 कम्मार - श्रमिक ।
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9.
10 पृणु राहू कइ - पंक्तिका अर्थ है के लिए (क) राज्यश्री प्रेमकी कसकसे पीड़ित हो उठी और मूहित हो गयी । परन्तु उसे सचेत किया से
11. 88 मिहिर महाहि — कान्ति श्रेष्ठ सूर्यसे
13. 120 अमवासाणिसियहि अमावस्थानी में और माहका उल्लेख नहीं करते जो चैत्रमास है । हमें माइका नाम 11. 1 से लेना पड़ा है ।
16. 96 महसूणु - मधुसूदन विष्णुका नाम है । हिन्दुपुराण विद्याने यह दिष्णुका नाम हूँ । क्या मदनको उस मधुसूदनके समकक्ष माना जाये जो मधुसूदनसे समता रखता है ।