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________________ -XLI ] 16 17. XL 1. सासय संभव - शाश्वत आशीर्वाद, ( शाश्वत + शंभव) ( संसार ) का अन्त कर देता है । पुसियबंभरिहरणयं - वह जिसने ब्रह्मा, खण्डन कर दिया है। 206 असिवाउस इस अभिव्यक्तिवर टिप्पणके 653 पर देखिए। 23 अमितं पियहि कण्णंजलिहि— अमृतका पान करिए मेरे काव्यका पान करिए। तुलना कीजिए कर्णाञ्जलिपुटपेयं विरचितवान् भारताख्यमभूतं यः रागमकृष्णं कृष्ण पायनं बन्दे । कुबेर । अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद 110 दम्म पाति — दृढ़ धर्मके पैरोंके नीचे । 6b गउ जेण महाजणु सो जि पन्यु - तुलना करिए महाजनो मेन गतः स पम्मा. 1 8. 12 कि जाहिं सोसि वषहि- [- क्या तुम सोचते जिनके अभिषेक के लिए पानी ले जा रहे हैं। 9 13 पदं मुवि - तुम्हें छोड़कर । 4. 10b सत्या स्वस्थ । अत्यन्त शान्त और प्रसन्न । 5. 14a जितसत्तुसुए जितशत्रुके पुत्रने, अजित, दूसरे तीर्थंकर 18b भारिणा — इन् । 6. 4a सई सई घारियल - इन्द्राणीने स्वयं धारण किया । 14. 15. भूमिका । ५११ 11. 7 कत्तियसियपत्रि – कार्तिक कृष्ण पक्ष में गुणभद्रके 49 से तुलना कीजिए। 41 जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्थ्यामपराग 1] गाणें यपमार्णे - उनका ज्ञान जो ज्ञेयके साथ विस्तृत है— अर्थात् केवलज्ञान । संभवणासणु — वह जो जम्म विष्णु और शिवके सिद्धान्तों का लिए म. पु. की जिल्व एक, पृष्ठ अर्थात् अपने कानोंकी अंजलिसे रामहम 13. 5 विषममिरुद्ध रिव- यक्षेन्द्र के मुकुटके अप्रभाग से माता हुआ । यक्षेन्द्र यानी कि समुद्र सुख गया, क्योंकि देवता सम्भव XLI 100 दहगुणिय तिष्णि सड्स - तीस हजार, यद्यपि गुणभद्र बीस हजारका उल्लेख करते हैं। 1a भवियति मिय— मध्य जीवोंके अन्धकारको । 14 सिंगारंगह = श्रृंगार के मंगका । श्रृंगार 1. णिदिदियई निवारउ -- जिन्होंने निन्द्य इन्द्रियोंका निवारण कर दिया है, अर्थात् वीर्थंकर, यहाँपर अभिनन्दन 18 जीहास इसेण विणु - हजार जीभवाले के बिना । फणीश्वरकी एक हजार जीम हैं, इस लिए वह तीर्थंकरकी सभी विशेषताओं का वर्णन करने में समर्थ है, परन्तु कवि पुष्पदन्तकी एक ही जीम है इसलिए वह तीर्थंकरोंके गुणोंके साथ न्याय नहीं कर सकता । 3. 16 मणिय वियर-धीरे चलते हैं इसलिए प्राणियोंको चोट नहीं पहुँचती। 56 तिष्णि तिउत्तरस्य — अभिव्यक्ति में म्यूनपद है, परन्तु वह स्पष्टतः वंशपरम्परा 363 सिद्धान्तको सन्दर्भित करता है। जैसा कि अपभ्रंश पाठोंकी सरलता सूचित करती है। 5. 76 थ्व सवारिउ उसने इसे पूरा सम्पादित किया ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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