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________________ ५१६ महापुराण [ XLII6. 12 आसणयणहरणि-आसनके कम्पन के द्वारा इन्द्र जानता है; आसनके कम्पायमान होनेके कारण इन्द्र जानता है कि जिनका जन्म हुआ है। 8. इस कड़वकमें उन दस लोकपालोंकी सूची है। जिनवरके जन्माभिषेकके समय जिनका आह्वान किया जाता है । ये देव या लोकपाल है-इन्द्र, अग्नि, यम, नैर्ऋत, वरुण, बाम, कुबेर, रुद्र, चन्द्र और फणीश्वर । यहाँ वाहनों, प्रहरणों, पलियों, और चिह्नोंके साथ उनका विशेष वर्णन किया गया है । जैसा कि २३वीं पंक्ति बताती है। 12-13 भयलज्जामाणमयवज्जियां जिणवर्ड पेम्मसमाण—जिनपरके प्रति व्रतप्रेमके अथवा चरित्र के प्रेमके वतके समान उत्तना हो जितना यह भय, लज्जा, मान और मरका परित्याग करता है, उसी प्रकार जिस प्रकार प्रेम में पड़कर आम्मी-भय आदिको अनुभूतिको उपेक्षा करता है। 17. जीवपविखबंदिग्गपंजरु-( मृत दारीर ) पक्षी ( आत्मा ) को पकड़नेका पिंजरा है। XLII 1. 18 समासई वइयर-व्यतिकर । कहानी या कथानकको संक्षेपमें कहता हूँ। 2. 4 पोमरयासिन्जिरियकुंजरघडे ( देशमें )-हाथियोंके झुण्ड कमलपुष्पोंके परागसे रंजित है । 5a दुक्खणिग्गमण इत्यादि-पुरुकलावतःका क्षेत्र इतना आकर्षक था कि वह वनश्रीसे समानता रखता था जो प्रेमको देवी है । रहरमण-तिका स्वामी ----कामदेव, कठिनाईसे अलग होगा। 106 रमन वइसमणो आवणे धावणे--धनका देवता-कुबेर प्रत्येक दुकान में प्रसन्न होता है, क्योंकि उसमें धनको प्रचुरता है । 15 उदसमवागिएण-मनको शान्ति के जलसे । 16 भोयतणेण-भोगरूपी तृण । ___३. 176 हरिसुद्ध देहेण-अपने रोमांचित शरीरसे | आनन्दके कारण । 4. 15a हुए हरिभणणे--जब कि हरिके आदेशसे, इन्द्रको आज्ञाओंको माना गया, जब कि नगर आदिको सजाया गया इन्द्र के भादेशसे । 17 अणवष्णि अरुहे-अहत्के जन्म के होने के पूर्व ही। 5. 21 शुल्लंतवडायहि-झण्डोंसे मूलते हुए । 7. 66 णिविषकामावहो—जिनेन्द्रका, ओ लगातार मा बिना किसी बाधाके, प्रेम अथवा वासनाके देवताका बात कर देते हैं। 100 टकरार दुर्गण-जड़ और धूतक लिए जिसका आचरण दुस्साध्य है। कसरका शान्दिक अर्थ है दुष्ट बैल । गिरिककरि पडइ-दुष्ट ऊंट अपने आपको फेंक देता है या घूमता है, जंगलके रेतीले क्षेत्रमें । मीठी घासके लिए, वहां जिसे वे नहीं पा साते । ५. 5 एणे पच्छिमस्थे- अब कि सूर्य पश्चिम दिशामें पहुँच गया, अस्त होने को था । 12. 156 घडिमाला यह-पूर्वसमय उन घटिकाओंसे मापा जाता है, जो समाप्त हो माता है। यदियहपाहीहि से तुलना कीजिए 5. 14a में । XLIII 1.5a णियायममगणिोऽयसीसु-पिसने शिष्योंको आगमके पवित्र मार्गपर निर्देशित किया है। 76 गलकंदलु-बल्बफे समान गलेवाला। 2. a णी-घोंसला या घर । 10a माविणि--(भामिनी ) औरत । 13 होउ पहन्या-पूर्ण हो । सामान्यतः अर्थ है समर्थ होना। परन्तु गवदकोश. पूर्ण अर्थ करता है। 14. जं पुरत इत्याधि-यदि
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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