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महापुराण
जन्म और मृत्युकी श्रृंखला संन्न रहती है। और भी दूसरे कर्म होते हैं जो बुरे कार्य है।
21 bab कुसुमबरि-पांच वाक्चयोंकी वर्षा कुसुमवर्षा है । स्वर्ग के फूलोंका बरसना, सुरपटनिनाद, स्वर्णक नगाड़ोंका शब्द, बहारा स्वर्गसे स्वर्ण की वर्षा, वेलुक्यण्डे ऊंचे करता, अहो दाणंदानकी शालीनता में किये गये प्रशंसा के स्वर्गीय शब्द: तुलना कीजिए वियागसुपसे, पृष्ठ 78 ।
23. समवसरणका वर्णन |
24. पाठ प्राविहाय का वर्णन - अशोकवृक्ष, पुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि चामर, सिंहासन, भामण्डल, देवदुन्दुभि और छत्र 10-12 और बादका कड़वक अपने गणका वर्णन करता है इसके लिए चित्रफलक देखिए ।
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26, 10 सिंहरिहि - सुमेरु पखपर। 58 - दण्डकवाडुरुज गजगपूरणु-उप प्रक्रियाका वर्णन करता है जिससे जिनेन्द्रकी आत्मा सिद्धशिलापर आरोहण करती है ।
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यह सन्धि सगरकी कहानी बताती है, जो जैनोंके दूसरे चक्रवतीं है ।
1.2 महातिजा, जिसने गणधर गौतम इन्द्रभूतिसे त्रेसठ शलाका पुरुषोंके जीवन के बारेमें कहनेके लिए कहा था। 4 दाहिणयलि के लिए 'ए' और 'के' प्रतियोंमें सामान्यतः उत्तरयति 'पाठ' है, परन्तु 'के' प्रति इसकी जगह शुद्ध पाठ दाहिणयलि मानती है। गुणभद्रके उत्तरपुराण में श्रीपत्र प्राग्विवेहस्य सीताप्राम्भागभूषणे ।
विषये वत्सकावत्यां पृथिवोनगराधिपः ।। 43-58
12 घरकूलाल – राजधानी पृथ्वीपुर जो अपने प्रासादोंके शिखरोंसे आकाश को छूती थी ।
2. 98. सिमोहणीउ मुहि विदुदारों प्रति प्रेमको रोकना मुनियोंके लिए भी कठिन है। 10 जिणवरवणु रसायणु-राजाके मन्त्रियोंने उस दुःखको सहने के लिए जिनवरका वचनामृत दिया । 4. 3 इयरु वि - अर्थात् महायत मन्त्री । 58 कि दोहि मि पडिश्रहणणिबंधु देव महाबल, (पूर्वजन्मका राजा जयसेन ) और देव मणिकेतु ( पूर्वजन्मका महारुत मन्त्री ), दोनोंने यह समझौता किया कि जो पहले मनुष्य होगा, उसे दूसरा इस तथ्यका स्मरण करायेगा जो स्वर्ग में देर तक देव रहता है।
5. 9-10 सार्वभौम राजाके ये जीवह रत्न हैं ।
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36 जिलनो सम्पत्ति भरतकी थी, उतनी ही सगरकी भी हुई, चक्रवतोंके रूपमें । 7. 1a मयमउलविणवण - हाथी मदके कारण बखें बन्द किये हुए या । अर्थात् मणिकेतु ।
8. 96 सरणिहि कोविक हसिमि ताव — जवान औरतें उसपर हंसों और उसे पापा कहकर
पुकारा ।
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10,
24 देवसाहू - मणिकेतुने देव होने के कारण साधुका रूप धारण कर लिया ।
12. गंगा अवतरणका वर्णन ।
10 रयणकेज
14.
2a विह्नि ऊणी तट्टी- -साठ हजार पुत्रों में से दो को छोड़कर, ( भीम और भागीरथ ), जो अपनेको मौससे बचा सके । 96 गत आवह णउ सरिसरत रंगु नदी के जलकी तरंगें, जब एक बार जाती हैं तब दुबारा नहीं लाठीं ।