SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -XXXVIII ] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद विक्रियाधारीऋद्धिमत, मनःपर्ययज्ञानी, अनुत्तरवावी, गायिका, श्रावक, श्राविका और देव, देवी तिर्यपत्यादि। इस संपके साथ भगवान् अजितनाथने 53 लाख पूर्व तक धरतीपर भ्रमण किया (बारह वर्ष कम ), तब यह सम्मेवशिवरपर गये और 72 लाख पूर्वका जीवन पूरा कर उन्होंने मो महीनों तक प्रतिमाओंका अभ्यास किया और चैत्र शुक्ला पंचमीको उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। इस अवसरपर देवोंने भगवानकी पूजा की। अग्निकुमारने घनके शरीरका दाह-संस्कार किया । देवेन्द्र ने आदरपूर्वक भस्मको इकट्ठा किया और उसे समुद्र में फेंक दिया । मैंने यहां अजितके जीवनका समूचा जीवन विस्तार दे दिया है। यही चीजें प्रायः प्रत्येक तीर्थकरके जीवनमें दुहरायी पामेंगी । केवल समय, नामों, तिथियों में कुछ परिवर्तन के साथ। इस विस्में वणित सभी तीर्थंकरोंके जीवनफे वर्णममें इन बातों को नहीं दुहराया जायेगा। इन बिस्तारोंको इम चित्र रूपमें दे रहे हैं जिससे पाठक उन्हें समझ सकें । 7. 24- सोयहि दाहिणकलि-के' प्रतिमें उत्तर पाठ है, परन्तु हमने उसे सुधार किया है। और उत्तर कर दिया है। गुणभद्रके उत्तरपुराणके प्रमाणपर, जिममें पाठ इस प्रकारका है-सीतासरिवपाभागे वत्सास्यो विषयों महान् । यहाँ अपाग्भागका अर्थ है दक्षिण ! 8 हलिा:-किसानों के द्वारा। 8. Jab जसु सोहगर्गे-प्रेमके देवता ( कामदेव ) राजा विमलबाहनके सौन्दर्य के कारण पृष्ठभूमिमें चला गया इसलिए उसने शरीरको छोड़ दिया और वह अनंग हो गया। 9. 2 पंचमहन्दयमायउ-पांच महायतोंको माता। अर्थात् पञीम भावनाएं', एक-एक व्रत को पांच भावनाएं | Ba दसवसुशिविण- कामभावनाएं दर- हो म होती है ! विस्मारके लिए तत्त्वार्थ सूत्र देखिए VI. 24 । इन भावनाओं से व्यक्तिको तीर्थकर गोत्रका इन्ध होता है ।। 10. 9a सो अहमराहिउ---वह अहमिन्द्र जो पूर्वजन्ममें विमलवाहन था। I! फणयमणि. लयण-( अयोध्या ) जिसके स्वर्णप्रासाद है। 11. 15 माणवमाणिणिवे सें-परतीको स्त्रियों का वेश धारण किये हुए ! 4 गम्भि ण यंतहजिनके गर्भमैं स्थित होने के पूर्व इन्दने स्वर्णकी वर्षा की। जिनेन्द्र अजितके विजयाके गर्भ में आनेके पूर्व । 12. सोलह स्वप्नों के लिए म. पु. प्रथम जिल्य, पृ. 600-601 देखिए । 13. 4a-b कुंजरवेसें-अहमिन्द्र अपने जीवनको अवधि समाप्त कर (विजप विमान में ) रानी विजयाके मुख में, एक हाथी के रूप में इस प्रकार प्रविष्ट हुए जिस प्रकार सूर्य बादलों में प्रवेश करता है। 9-10 ये पंक्तियाँ ऋषभ के निर्वाण, अजितनाथके विजयाके गर्भ में अवतरणके बीचकी अवधिका वर्णन करती है जो पचास करोड़ सागर प्रमाण है । ___14. 4-5 दसणकमलसरणच्चियसुरवरि--इन्द्र अपने ऐरावत हाथोपर आरूढ़ हुआ। जिसकी कमलसरोवर के समान सूंडपर देवता नृत्य कर रहे थे । 85 सरसर सिर-भकिसे परिपूर्ण बातें करते हुए। __15. 6 मन्तु पणवसाहा संजोइदि-'ओं स्वाहा' मन्त्रका प्रयोग करते हुए । ___18. 94. वसुवइवसुमहकताक़ते-अजितके द्वारा, जिनकी दो पत्नियां थीं। अर्थात घरतो और लक्ष्मी । 19. !6 ईसमणीस समासमलोधी-स्वामी अजितका मस्तिष्क पूर्णतः मानसिक शान्तिमें निमग्न था। ( सम, उपधम, बैराग्य )। 46 आउ वरिसवरिसेग मि सिजइ-मनुष्यको माधु वर्ष प्रतिवर्ष कम होती जाती है। ___20. 4-5 गइदुधरित्तकम्मसंताणइ-अपनी जातिको जारी रखने के लिए, जिसका अर्थ है कर्माकी परम्परा, जैसे- गति ( देवमनुष्यादिगति ) खोटे कार्य ( दुश्चरित्र ) । जातिको जारी रखने के कर्ममें
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy