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________________ महापुराण [६६.८.३ राएं पडिवपणउं वयणु तासु भणु मुवणि ण दुबई णियइ कासु । णिउ णरपरमेसर तेण्ड वेत्यु करिमयरभयंकरु जलहि जेत्थु । जीहिं दियविसयेवसेण खवित तहि सिहरि सिलायलि णिवह थविउ । चट्टयविहत्थु रोसेण फुरित सूयारवेसु देवेण धरिउ। पणिउ मई जाणहि किंण पाव खलवयणणडिय रे कूरभाव । चिंचिणिहलस्थि दप्पिट दुर्दु हर पई जम्मतरि णिहउ कहूँ। इय कदिवि तेण सयखंडु करिवि मारिउ गउ गरयह भलमु मरिदि। धत्ता-गोत्तमु बज्जरइ मगहाहिव चारु चिराण ॥ अण्णु वि णिसुणि तुई बलणारायणहं कहाणउं ! ८|| इह खेत्ति णिसे विवि जइणमग्गु । दो पत्थिव गय सोहम्मसगा । तहि एक्कु सुकेउ सहुँ ससल्लु किं वण्णामि मूढेउ मोहगिल्लु । इह भारहति संपुण्णकामु चरि पाहु बरसेणु णामु । खालसगयणयलि चंदु दाणोल्लियकरु णं सुरकरिंदु । तहु देवि पढम पिय वइजयंति लच्छिमइ बीय णं ससिहि कति । जइयतुं सुभउमि मुइ जाणियाहं छहसयसमकोडिहि झीणियाहं । तुम्हारे देखनेसे वे त्रस्त हो उठते हैं। नहीं तो दूसरे परती गएकालो को निकास गररे ? राजाने उसका कहा स्वीकार कर लिया । बताओ संसारमें किसकी नियति ( अन्त ) नहीं आती १ उसके द्वारा वह नरपरमेश्वर वहां ले जाया गया कि जहाँ हाथियों और मगरोंसे भयंकर समुद्र था। जिह्वा इन्द्रियके विषयरूपो विषसे नष्ट वह राजा पहाड़की एक चट्टानपर स्थापित कर दिया गया। देवने जिसके हाथमें करछुली है ऐसा रसोइयेका रूप धारण कर लिया और कोषसे तमतमाया । वह बोला-“हे पाप, तू मुझे नहीं जानता। दुलोंके वचनोंसे प्रतारित हे दृष्टभाव, चिचणी फल (इमली ) के अर्थी दपिष्ठ और दुष्ट कठोर जन्मान्तरमें मैं तेरे द्वारा मारा गया।" यह कहकर उसने सो टुकड़े कर उसे मार डाला । सुभौम मरकर नरकमें गया । घत्ता-गोतम कहते हैं-हे मगधराज, एक और सुन्दर और पुराना बल तथा नारायणका कथानक है, उसे सुनो |८|| इस भरत क्षेत्रमें जेनमार्गका पालन कर दो राजा सौधर्म स्वर्ग गये। उनमें एक सुकेतु या जो शल्य सहित था । मोहग्रस्त उस मूर्खका क्या वर्णन करूं? इस भारत में चक्रपुरमें सम्पूर्णकाम वरषेण नामका राजा था। वह इक्ष्वाकुवंशरूपो आकाशतलका चन्द्र था, दान (जल और दान) से आकर (हाथ और सूंड) वाला जो मानो ऐरावत गज था। उसको पहली प्रिय पत्नी वैजयन्ती थी तथा दूसरी चन्द्रमाकी कान्तिके समान माना लक्ष्मीवती थी। सुभीमके मरनेपर जब ८. १. A वडिवण । २. AP विसविसेण । ३. A चहुवविहल्यु; ' चद्द अविहत्थु । ४. A दुट्ट । - ९, १.A मुज । २.A मोहें मूढगिल्लु । ३. A चक्काउरणाह।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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