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________________ -६६. १०, ७ ] महाकवि पुष्पवन्त विरचित तयहुं संचु सोहम्मदेव tude लच्छिमहि ससल्लु तहिं एक्कु पको िदिसेणु णाम हकारिष्ट पुंडरी ते वेणि वि णीलसुपीय वसण दोहं म उ आषयाउ उत्तु जयंतिहि सोक्खदेव । किं चणमि अप्पडिमल्लमन्तु । today विदुत्थियकामधेणु । किं णमि रिपुंडरीच । ते बेणि वि भायर धवलकरण । दोहं मिसंसिद्ध देवयाउ । - सीरिति साहियां लप्पण्णसहासई वरिस | हि नाहिय पर माउसु एं सुपुरिसहं ॥२॥ छबीसचा देह पमाणु safe ft उर्विदणु तहु तेण घीय दामोधरासु तर पराइन पहु णिसुंभु जाय रणु विवहि लग के वि परिहरिणा पल्लिउ धगधगंतु तेणा उरयलि पडिङ वेरि १० तहिं ताइं पहुत्तणु जाणमाणु । जो देवहिं गेज्जइ धरिवि वेणु । पोमावर दिण्ण कयायरासु । चिरभवि सुकेत सो रिवणिसुंभु । अवरोधपरु णव सक्रिय इणेवि । धरिय कण्ण रहंगु पंतु । अभीसणु कयधम्मावरि । ४७३ ܘܐ जो छह सौ करोड़ वर्ष बीत गये तो सौधर्म स्वर्ग से देव च्युत होकर वैजयन्तीका पुत्र हुआ सुखका कारण था। दूसरा जो सशल्य था, वह लक्ष्मीमतीसे जन्मा अप्रतिम मल्लोंके महल उसका में क्या वर्णन करूँ उनमें से एकको नन्दिषेण कहा गया और दूसरेको जो दुःस्थितों (विपत्तिग्रस्तों ) के लिए कामधेनु था, पुण्डरीक नामसे पुकारा गया । शत्रुरूपी हरिणोंके लिए पुण्डरीक (व्याघ्र ) के समान था उसकी में क्या स्तुति कैसे ? वे दोनों ही नील और पीत वस्त्रवाले थे। वे दोनों ही भाई गोरे और काले थे। दोनोंने आपत्तियों को तहस-नहस कर दिया था। दोनोंको विद्याएँ सिद्ध थीं। घता - श्री बलभद्र नन्दिषेणकी आयु छप्पन हजार वर्षं कही गयी है। चकवर्ती पुण्डरीककी आयु भी इससे अधिक नहीं थी, इस प्रकार दोनों सुपुरुषोंकी यह परमायु थी ||२९|| १० दोनों के शरीरका प्रमाण छब्बीस धनुष था । वहाँ उनका प्रभुत्व भी ज्ञातमान था । इन्द्रपुरीका राजा उपेन्द्रसेन था, जिसका देवों द्वारा वेणु लेकर गान किया जाता था । किया गया है आदर जिसका ऐसे उग्र दामोदर ( पुण्डरीक ) को उसने अपनी कन्या पद्मावती दे दी । पूर्वभवमें शत्रुओं का नाश करनेवाला जो सुकेतु राजा था, ऐसा निशुम्भ राजा ( वक्रपुरका ) उसका अपहरण करनेके लिए आया। दोनोंमें युद्ध हुआ। वे विद्याओंसे लड़े। वे एक-दूसरेको मारनेमें समर्थ नहीं हो सके। प्रतिनारायण निशुम्भने धकधक करता हुआ चक्र चलाया। आते हुए उसे नारायण पुण्डरीकने पकड़ लिया। उससे शत्रु का वक्षःस्थल आहत होकर अत्यन्त भयंकर और धर्मकी ४. AP अष्णेत्रकु वि लच्छिमहि । ५. AP अप्पणिमल्लू। ६. APमिगं । ७. AP read a as b and bass. ८. P संचिण्णउ । ९, AP एउ ६०.
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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