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________________ महापुराण [६५. २४.३ जाया रिद्धिइ सकसमाणा जहि दीसहि सहि वियवर राणा। जहिं दीसइ तहिं पसु मारिमाइ पियरहं ढोएप्पिणु पलु खजइ । सोमपाणु महुमहुरउ पिज्जा सामवेयपड मणहरु गिजा । विसलजण्णमंडवसिरि दायर होमहुयासधूमु णहि धावइ । णिवमेव संठियपटिहार परसुरामदेवेसदुवारइ । पयडियदंतपंविवियरालई खंभि खंभि कीलियई कपालई। ताराणियरसिसिरकरधवलई णं जसवैलिहि फुल्लई विमलई । जायउ सर्वेभोमभूवालउ किं वणिजइ तावसबालउ । गुरुहारहि कह कह व चलंतहि मायहि पसवणवियणफिलंतहि । उप्पज्रइ सो को वि सुर्णदणु फिजइ जेण वहरिसिरछिंदणु । जामयरिंगणरणाहें मेहब अण्णहु जयविलासु कहु एइष्ट । पत्ता-भरहु असेसु वि भुत्तउ हय रिउ तायवहि ।। पुप्फदत सड्ड तेएं समय परवि णहि ॥२४॥ इस महापुराणे विसट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फयतविरहए महामस्वभरहाणुमग्णिए महामने अरतिस्थंकरणिधाणामण परसुरामविहवषण्णणं णाम पंचसटिमो परिच्छेश्रो समतो १६५॥ AN बढ़ रहा है ऐसे विप्रोंको धरतो दे दी। ऋषिसे वे इन्द्र के समान दिखाई देने लगे। जहां दिखाई देता है वह ब्राह्मण राजा है। जहां दिखाई देता है वहाँ पशु मारे जाते हैं, पितरों को पढ़ाकर मांस खाया जाता है, मधुर मधुर सोमपान किया जाता है, सामवेदके मधुर पदोंका गान किया जाता है, विपुल यशोंकी मण्डपत्री दिखाई देती है, यज्ञोंकी आगका धुओं आकाशमें दिखाई देता है। जिसमें प्रतिहार बैठे हुए हैं, ऐसे परशुराम राजाके द्वारपर निस्य ही, जो स्पष्ट दिखाई पड़नेवाली दन्तरक्तिसे विकराल हैं ऐसे कपाल खम्भे-खम्भेपर ठोक दिये गये हैं, जो ऐसे लगते हैं मानो यशरूपी कताके तारासमूह और चन्द्रकिरणोंके समान धवल और विमल फूल हों। वह सार्वभौम राजा हो गया। उस तपस्वी राजाका क्या वर्णन किया जाये गर्भके भारवाली, किसी प्रकार कठिनाईसे चलते हुए प्रसवको वेदनासे पीड़ित माताका वैसा कोई एक अच्छा बेटा पैदा होता है कि जिसके द्वारा शत्रुका सिर काटा जाता है। जमदग्नि राजाने जैसा विजविलास भोगा) ऐसा जयविलास किसका है ? पत्ता-पिताका वध होनेपर उसने शत्रुको मारा और अशेष भारतका भोग किया । उसके तेजसे सूर्य और चन्द्रमा आकाशमें बरसे भ्रमण करते हैं ॥२४॥ इस प्रकार श्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामन्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में भरतीर्थकर निर्वाण गमन एवं परशुराम विभव वर्णन नामका पैसठवाँ परिच्छेद समाप्त हुभा ॥१५॥ ३. A सुवार । ४. A सम्बभूमिभूषालच । ५. A कहि । ६. A सुभूमपकवनिप्पसी ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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