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-६१. २४.२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-णियपइपुत्तहं मरणे सोयविसंतुलिय सुंदरि भयकंपियतणु कस्बइ संचलिय ॥२२॥
२३ सा गुमहार दिट्ट संडिल्ले ताबसेण संसयणवच्छों। अप्पिय सा सुबुद्धिणिगंथह सुद्धसहाबहु कहियसुपंथहु । वसँइ जिणालइ गइ रणयाला फुजियकाणणि वहिं निगमेलइ । पुत्तु पसूई देवहिं रविवार माधव कुमार निरेिलिः । पुच्छिष्ट साहु समंजसु पोसइ णंदणु छक्खंडाहिट होसइ । सोलहमा पत्तइ संवच्छरि तुहुं पेच्छिहिसि पिंधु तणुरुद्ववरि । देवीभायरेण हयसले
णिउ णियभवणहु सिसु संउिल्लं । पडिभष्टवरसिरखुडणसमत्थई परिपालिउ सिक्खि उ सस्थत्थई । एत्तहि रिसिजमयग्गिहि पुत्ते जयसिरिरइरसलंपडचित्त । धत्ता-जणणमरणु सुअरंत मारिय रायवर ।।
परसुमंतमाहप्पं रणि करवालकर 1॥२३।।
एकवीसवारउ णिवत्तिवि खत्तिय सयेलु वि छारुपैरतिषि । बटियवेयवयणमाहपई
पुहइ असेस वि दिण्णी पिप्पहं । धत्ता--अपने पति और पुत्रको मृत्यु के कारण शोकसे अस्त-व्यस्त, भयसे जिसका शरीर कोप रहा है ऐसी वह सतो सुन्दरी कहीं भी चल दी ॥२२॥
स्वजनोंके प्रति वात्सल्य रखनेवाले तपस्वी शाण्डिल्य ने जब उसे गर्भवती देखा तो उसने सन्मार्गका कथन करनेवाले शुद्ध स्वभावसे युक्त सुबुद्धि ( सुबन्धु ) नामक निर्गन्ध मुनिको उसे सौंप दिया । वह जिनालयमें रहने लगो। रणका समय बीतनेपर जहाँ पशूबोंका संगम है, ऐसे खिले हुए जंगल में उसने पुत्रको जन्म दिया। देवोंने उसकी रक्षा की । माताने अपने कुलके उतारकर्ताको देखा। उसने न्यायशील मुनिसे पूछा । उन्होंने बताया, "तुम्हारा पुत्र छह खण्ड धरतीका स्वामी होगा । सोलहवौ वर्ष प्राप्त होनेपर तुम अपने पुत्रके ऊपर राजचिह्न देशोगी।" जिसका शल्य नष्ट हो गया है ऐसा देवोका भाई शाण्डिल्य बच्नेको अपने घर ले गया। उसने उसका परिपालन किया और शत्रु योद्धाओंके श्रेष्ठ सिरोंको काटने में समर्थ शस्त्र-अस्त्रोंको उसे शिक्षा दी। यहां पर जमदग्निके विजयश्रीके रतिरसके लम्पट चित्तवाले पुत्रने
पत्ता-अपने पिताके मरणकी याद करते हुए रणमें हाथमें तलवार लिये हुए राजाओंको परशुमन्त्रके प्रभावसे मार डाला ।।२३॥
२४
इक्कीस बार मारकर, समस्त क्षत्रियोंको खाकमें मिलाकर जिनके वेदवचनोंका माहात्म्य २३. १. A सिसुमणवच्छल्लं; P ससुयणि वच्छलें। २. AP सह सुबंधू । ३. A तेस्य सा विजा सा
जिणाला; बसा जिणालइ गय रयणालइ । ४. A सचिषु त । ५. A सिरिजम । ६. AP सुमरतें।
७. A मंतिमाहप्प रण । २४. १. A सयक्ष वि । २. AP पतिवि ।