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________________ ४६२ . १० ५ १० केसरिकेसर किंर्छिण्णउं दे णि कालाणणि महापुराण के गर हालाeg froं । org समुलि । भोयणरिद्धि भरि ॥ मुंजिवि मज्जु घरि ॥ २१॥ २२ पत्ता- इज कहि रुयंति समबाहु seats वि जहिं मुत्तरं तहिं भागचं भिविषि य रिच हरिवि महोरिय घेणुय जिवि पुणु वि रोसरसभरियड ताजे इटु माय गय बेणि भि जण वीरं महाश्य करि तुरंगु रहबरु णरु णावर बिरस भाभीसई विखत्तिय मिि जो भूणाम विरु राण देव महासुधर जायच समचं तेण गम्भेण पलाणी [६५.२१. १० कंतु महारउ कंडहिं छिंदिवि । ता संथविय सँपुत्तिर्हि रेणुय | णयणजुयलजलु जणणिहि पुसियत । परसुमंतु दिण्णासीवाय | सायण संप्रइय । दस दिसु चलु परसु परिधाव | पिपुरा खणि छिण्णई सीसई | समुहहरंवरि बलिय । जो तत्र चारेवि मरिवि सनियागड | जो पुणरधि जम्मंतरि आयउ । सह विचितमइ णायें राणी । किसने चूर-चूर किया है ? उसने शेषनाग के फनसमूहको क्यों चूर-चूर किया है ? सिंहके अयालके अग्रभागको किसने छुआ ? गरलविषको किसने ग्रहण कर लिया है ? किसने कालानन में अपने शरीरको होम दिया है ? यमकी मुखरूपी विडम्बनामें कौन पड़ गया है ?" बत्ता - आदरणीया (माँ) ने रोते हुए कहा, "भोजनको ऋद्धिसे भरपूर मेरे घरमें भोजन करके सहस्रबाहु और कृतबीर - ॥२१॥ २२ जिस पात्र में उन्होंने खाया, उसीमें छेद कर और मेरे स्वामीको तीरोंसे छेदकर दुश्मन हमारी गायका हरण कर ले गया ।" तब पुत्रोंने अपनी मां रेणुकाको सान्त्वना दी। फिर को धके रस से भरे हुए उन दोनोंने गरजकर मौकी दोनों आंखोंके बांसू पोंछे । जिसने आशीर्वाद दिया है ऐसी माने, तभ बड़े पुत्र के लिए परशुमन्त्रका उपदेश दिया। वीर और महा-आहत वे दोनों गये और उस साकेत नगर पहुँचे। हाथो घोड़ा, रथवर और मनुष्यकी भाँति वह चंचल फरसा दसों दिशाओं में दौड़ता है । पिता-पुत्र के लम्बे केशवाले, मोहोंसे भयंकर सिरोंको उसने क्षण-भर में काट डाला । भागते हुए क्षत्रियोंको भी उसने धूलमें मिला दिया और उन्हें धमके मुखरूपी कुहर में डाल दिया । जो पुराना भूपाल नामका राजा था और जो तप कर निदानपूर्वक मरा था, महाशुक्र स्वर्ण देव हुआ था और पुनः जन्मान्तरमें आया था। उसके साथ गर्भ लेकर (उसे गर्भ में रखकर ) fafeमती नामकी उस सती रामोने वहाँसे पलायन किया। ८. A जिति । ९AP भुत्तरं । १०. AP हरि । २२. १. AP गव । २. AP महारी । ३ A सहि । ४. P धीर । ५. AP संपाइय । ६. AP भूषालु । ७. AP सो ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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