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________________ -६५. १४.२] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ५ ता पभणइ सुरु सम्माइद्विप जो तुम्हारइ णिहा णि ट्ठिल । सोदावहितावसु जो गयमल आउ आउ वह धरणायलु। सुहिणा उत्तर मयणणिवारस पेच्छेहि रिसि जमय ग्गिभडार । ते बेणि वि जण गुणगणसिक्खहि सजण लग्गा धम्मपरिक्खहि । गय कलविकमिट्टणु होएप्पिणु थिउ मुणिमीसियवासु रएप्पिणु । कणु चुणंति कीलंति भमंति वि तावर्सेमासुरवासि रसंति वि । अण्णहि दिणि जंपइ चिइसमउ कति कति हाल भर्मणपियल्लज ! गच्छमि लम्गउ एत्थु जि अच्छहि कलइ आयहु महु मुंहूं पेच्छहि । ता चिडल्लियाइ पडिबोजित हियवउ णाह महारउ संलिट ! पई विणु एकु धि द्विवहु ण जीवमि अञ्ज वियाला जमपुरि पावमि ! करहि सवह जइ परइ ण आवहि . तो मई णिच्छउँ मुइय विहायहि । धत्ता-भणह पक्खि हलि पक्खिणि परइ ण एमि जइ ।। हर एयह जमयग्गिहि दुचित लेमि' तइ ॥१३॥ तं णिसुणिवि सयबिंदुहि गंदणु पभणइ रोसजलणजालियतणु । अरि अरि पिसुण पक्खि कि बुकडं महुं गुणवंतह किं किर दुनिउँ । तब वह सम्यग्दृष्टि देव कहता है कि जो तुम्हारी निष्ठा ( साधना ) में लीन है, और जो गतमल है, ऐसे तापसको बताओ। आओ-आओ, धरणीतलको चले। सुधिदेवने कहा-कामका निवारण करनेवाले आदरणीय जमदग्नि मुनिको देखिए। वे दोनों ही देव, जिसमें गुणगणकी शिक्षा है, ऐसी धर्म परीक्षामें लग गये। वे दोनों चटक पक्षीका जोड़ा बनकर मुनिकी दाढ़ीमें घोंसला बनाकर रहने लगे। वे दोनों कण चुगते क्रीड़ा करते और भ्रमण करते । तापसके दाढ़ीरूपो घरमें रहनेवाले वे दोनों शब्द भी करते । एक दूसरे दिन चिड़ा कहता है-'हे प्रिये, प्रिये, मैं भ्रमण-प्रिय हूँ। मैं जाता हूँ। तुम यहाँ लगकर रहो। कल आये हुए मेरा मुँह तुम देखोगी। तब चिड़ियाने उत्तर दिया कि हे स्वामी, मेरा हृदय पीड़ित है, तुम्हारे बिना में एक दिन जीवित नहीं रह सकती, मैं आज ही शाम यमपुर चली जाऊँगी। तुम शपथ लो। यदि तुम कल तक नहीं आओगे तो तुम मुझे निश्चित रूपसे मरा हुआ देखोगे ? पत्ता-चिड़ा कहता है-“हे चिड़िया रानी, ( पक्षिणी ) यदि मैं कल तक लौटकर नहीं आया तो मैं इस जमदग्निके पापको ग्रहण करूं" ॥१३॥ यह सुनकर क्रोधकी ज्वालासे जिसका शरीर जल रहा है, ऐसा शतबिन्दुका पुत्र बोला, १३. १. AP बमबह । २. ५ पच्छहि । ३, A जिण | ४. A तावसभासुर । ५. A रमंति। ६. A भवणं; ____P भणमि ! ७. महुँ । ८, A डोल्लिर । ९. A करहु । १०, A णिच्चउ । ११. A लेवि । १४. १. A पक्सि पिसुण । २. AP बुकिङ ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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