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जइ दुनिल तो पई संघारमि हत्थे णिहसिवि पेड़ समारमि | एव चवेप्पिणु कयसंकीलणु करहि णिहिटिस सउणिणिहेलणु । पेहुणिल थिय अंबरि जाइषि पभणिय तपसि सेण पोमाइवि । तबहु ण जुत्तउं जीवविणासणु खमहि ताय खस मुणिहिं विहूसणु । ता भासइ छारेणुलिस
हर तुम्हहिं किं झाणहु चालिन । कि मई फियर पारतवचरणे गणवइतिणयणपूयाकरण । ता घरेपक्खि कहइ लहगडं पई तवतावें वावि अंगडं । पर किं वेयवयण ण वियाणि षड कलत्तु ण कत्थु कि माणिलं । सुयमुहकमलु ण कहिं वि णिहालिडं दुरिएं अपाणउं किं मइलिछ । णस्थि अपुत्तर गइ विप्पागमिता संजाय चित जइपुगमि । घता-अण्णाणिड तवभठ्ठल मायावयणहर ।
सो नहु पारयणामह मामहु पासि गर |॥१४॥
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तणुसहकारणि मग्गइ कपण कजलकंधणमरगयवण्ण) देयालु व वियरालु जडालउ अवलोएप्पिणु ण बालउ । थे जराजजरिटण लना घरघरिणीवाएं किह भजइ।
कोलंदी अण्णे पियारी कुयरि रेणुधूसर लहुयारी। "अरे अरे पुष्ट पक्षो, तूने क्या कहा, मुझ गुणवान में क्या पाप है ? यदि दुष्कृत है तो तुम्हें मारता हूँ। हायसे रगड़कर चूर्ण-चूर्ण करता हूँ।" यह कहकर, जिसने परिहास किया है, ऐसे पक्षियों के घोंसलेको वह हापसे रगड़ता है। दोनों पक्षी जाकर आकाशमें स्थित हो गये प्रशंसा करते हुए। तापससे कहा कि तपस्वीके लिए जीवका नाश करना ठीक नहीं। हे तात, क्षमा कीजिए, क्षमा मुनियोंका आभूषण है। तब भस्म विभूषित वह मुनि कहते हैं कि तुम लोगोंने हमें ध्यानसे क्यों विचलित किया १ गणपति और शिवकी पूजा और तपश्चरण करके मैंने क्या पाप किया? इसपर गृहपक्षो कहता है-"अच्छा लो, तुमने तपतापसे अपने शरीरको सन्तप्त किया। पर क्यों तुमने वेद वचन नहीं जाना। तुमने नवकलत्रको भी नहीं माना। तुमने पुत्रके मुखकमलको कभी भी नहीं देखा । तुमने अपनेको पापसे मलिन क्यों किया? ब्राह्मणोंके आगमके अनुसार पुवहीन व्यक्तिको कोई गति नहीं है।" ( यह सुनकर ) यसिंबरको चिन्ता पैदा हो गयी।
पत्ता-अज्ञानी तपसे भ्रष्ट और मायावचनोंसे बाहत वह अपने पार, नामके मामाके पास गया ॥१४॥
पुत्रकी इच्छासे यह कन्या मांगता है। काजल, स्वर्ण और मरकतके रंगका वह वेतालके समान विकराल और जटासे युक्त था। उसे देखकर, कन्याएँ भाग गयीं। बुढ़ापेसे जजेर वह बूढ़ा जरा भी नहीं लजाया। पर और गहिणीकी बातसे वह कैसे भग्न होता? खेलती हुई एक और
३. AP पिट्ठ | Y, AP हि । ५. AP कमठ । ६. A सुरपमिल; T घरपक्लि । ७. AP पई । १५. १. AP परि परिणों । २. धूसरि ।