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________________ ४४३ -६४. ११.४] महाकवि पुष्पदन्त विरचित दोसहसाई पंचसयाई भोहि णाणिहिं केलिहिं ति दोण्णि लेहि । पंचेव सहस सउ एफु ताह महरिसिहि विश्वणरिद्धि जाई। वोसहसई पपणासाहियाई गुणवंतह वाइहिं साहियाई । सहसाई तिण्णि तिणि जि सयाई मणपज्जववंतह गयमयाई । सहसाई सट्टि आहुइसयई अज्जियहं तेत्थु थुयकुंथुपयई। सार्वयह लक्ख दो दिणि लक्ख सावहिण याणमि देव संख। संखेज तिरिया पाकरालु जेन्दिन होवि भित्र चायालु । तेत्तिज सोलहव रिसूणु कालु महि विहरिवि हयणरमोहजालु । गठ संमेयह सम्मयगुणालु तं सुकमाणु पूरिउ बिसालु। पडिमाइ परिट्ठिउ मासमेतु रिसिसहसं सहुं णिमुकगत्तु । पत्ता-पइसाहहु सियपडिवइ जामिणिमुहि णिहयक्खहु ।। गउ जिणु सहसक्खें कित्तियउ कित्तियरिक्खे मोक्खहु ।।१०।। उपदटण कय तियसहिं तासु सरीरपुज सुरकिंकरकरहयविविहबज्ज । भंभाभेरीदुंदुहिणिणाय घणथणियामरमुहमुकणाय । पयपणइपयासियदुरियदलणे जय जयहि जिणेसर कम्ममलण । उज्वसिरंभाणाचणरसिल्लु। सयमहकरपंजलिपित्तफुल्ल । विनीत शिक्षक थे। दो हजार पाँच सो अवधिज्ञानी थे। तोन हजार दो सौ केवलज्ञानी, विक्रिया ऋषिके धारक महामुनि पांच हजार एक सो, गुणवान वादी मुनि दो हजार पचास थे, तीन हजार तोन सौ मद रहित मनःपर्ययज्ञानी थे। साठ हजार तीन सौ पचास कुन्थु भगवानके चरणकी स्तुति करनेवाली आर्यिकाएँ थीं। दो लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएं थीं। देवोंकी संख्या में नहीं जानता। नखोंसे भयंकर जितना संख्यात तिथंच समूह था, वह गोलाकार स्थित हो गया। जिन्होंने मनुष्यों के मोहजालको नष्ट किया है, ऐसे सम्यक्त्व गुणोंके पर वह उत्तने हो सोलह वर्ष तक धरतीपर विहार करते हुए सम्मेदशिखर पहुंचे। वहां उन्होंने विशाल शुक्लध्यान पूरा किया। एक माह तक प्रतिमा योगमें स्थित रहे और एक हजार मुनियोंके साय शरीरसे मुक्त हो गये। घता-वैशाख शुक्ला प्रतिपदाके दिन रात्रिके पूर्वभागमें कृत्तिका नक्षत्रमें इन्द्रके द्वारा कीर्तित जिन मोक्षके लिए गये ॥१०॥ जिसमें देवों और अनुचरोंके हाथोंसे विविध वाद्य बजाये गये हैं, देवोंने उनकी ऐसी शरीर पूजा की। भम्भा, भेरी और दुन्दुभियोंका निनाद और जोर-जोरसे बोलनेवाले देवोंका नाद होने लगा । चरणों में प्रणत लोगोंके पापोंका दलन प्रकाशित करनेवाले और कर्मों का नाश करनेवाले हे देव, आपको जय हो। जो उर्वशी और रम्भाके नृत्यसे रसमय है, जिसमें इन्द्र के हाथों फूल फेंके जा १०. १. A केवलिहि वि दोणि । २. A सावयह संख दो । १. A omits this foot. ११. १. AP दलणु । २. AP वरजलणकुमारणिहितजल । ३. A रसिल्क । ४. A फुल्ल ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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