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महापुराण
[६४, ११.५तुबरुणारयसंगीयगेय
विरइय जिणपद्धिविबाहिसेय । मालाविजाहरपिहियगयण मुणिघोसियणाणाथोत्सवयण । णवकमलकलसवप्पणसमेय धवलायबत्तधयसंखसेय। दूवंकुरदहिचंदणपसस्थ
घंसगविलंबियदिव्ववत्थ । सण्णाणि सुसणि विलबुद्धिणियाणपुज्ज महुं देख मुद्धि । घत्ता-सुई कुंथु भडारउ देउ महुं वंदिउ भरहरिदहि ॥
सियपुप्फयंतउज्जलमुहिं मिल फणिसुरिंदहिं ॥११।।
इय महापुराणे विसटिमहापुरिसाणाकंकार महाकइपुप्फयतविरहर महामस्वमरहाणुमपिणए महाकम्वे कुंधुर्चकहरतिस्पयरणिध्वाणगमणं णाम घाटिमो
परिको समतो ॥४॥
रहे हैं, तुम्बुरु और नारदके द्वारा गीत गाये जा रहे हैं, जिन प्रतिबिम्बोंका ऐसा अभिषेक किया गया। जिसमें विद्याषरोंकी कतारोंने भामाशनो दल लिया है, जिसमें मुनियोंके द्वारा नाना स्तोत्रवचन घोषित किये जा रहे हैं, जो नवकमल-कलश और दर्पणसे युक्त हैं, जो धवल आतपत्र ध्वज और शंखोंसे पवेत है। दुर्वांकुर, दही और चन्दनसे प्रशस्त है, जिसमें बाँसोंपर दिव्यवस्त्र अवलम्बित हैं, ऐसी निर्वाण पूजा, मुझे ज्ञान और दर्शनसे युफ विपुल बुद्धि और शुद्धि प्रदान करे।
पत्ता-भरतादि नरेन्द्रोंसे वन्दित, श्वेत नक्षत्रों के समान उज्ज्वल मुखोंवाले नागेन्द्रों-सुरेन्द्रों द्वारा नमित आदरणीय कुन्थुदेव मुझे सुख प्रदान करें ॥११॥
बेसह महापुरुषोंके गुणाकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त बाग विरचित पूर्व महाभय मरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में कुन्थु पक्रवर्ती और तीर्थकर
निर्वाण गमम मामका चौसठवौँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥६॥
५. AP सेयरविसहरवाहि । ६. AP कुंथुपाकवहितिस्पयरपुराणं ।