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________________ -६४.३.१० 1 महाकवि पुष्पदन्त विरचित बंधिवि वित्यंकरणामकम्म मउ उवरिमिल्लु ससिरियसोम्मु । पत्तउ पंचाणुचरविमाणु मुंजिवि तेत्तीसजलणिहिपमाणु । छम्मास परिष्ट्रिउ आउ जाम वइसवणहु कहइ सुरितु ताम । पत्ता-दीवि पहिल्ला पविउलइ भरहि देसु कुरुजंगलु ।।। गयउरि महिषइ बहिं यसइ सूरसेणु जैगमंगलु ॥२॥ कुरुकुलकहुँ सिरिजयसिरिणिकेउ कासवगोतें भूसिउ सुतेउ । सिरिकत कंत कमणीयरूय सुरखवरणियंदिणितिलयभूय । णरणाहहु सा वल्लहिय केव सुत्रियहड वरकश्वाणि जेव । एउहुं वोहं मि होही ण मंति जिणु कुंथु णाम केवलि कहंदि । करि पुरवरू प णंदणवणालु पुजिन्ना भत्तिइ सामिसालु | तं णिसुणिवि धणएं तं विचित किउ पयह कणयमाणिकदित्तु । पवणुद्धयपहकप्परर्पसु सरसरिनीरंतररमियहंसु। पासायचूलियालिड़ियमेडु गय[ग्गयसुरहियधूंमरेहु । पत्ता-सेहुं सुत्ती रयणिहि सयणि बालहंसर्गयेगामिणि ।। पच्छिमजामइ सोलह वि पेच्छइ सिविणय सामिणि ॥ ३॥ १० ग्रहण नहीं करते। तीर्थकर नामक प्रकृतिका बन्ध कर वे मर गये तथा वे ऊपर चन्द्रबिम्बके समान सौम्य पांचवें अनुसर विमानमें पहुंचे। वहां तैंतीस सागर प्रमाण आयु भोगते हुए जब छह माह आयु शेष रह गयी, तो इन्द्र कुवेरसे कहता है। पत्ता-पहले द्वीप जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें कुरुजांगल देश है। वहाँ हस्तिनापुरमें जगमंगल राजा सूरसेन राजा है ॥२॥ -..-----..-.--. -.---...--inmarmer कुरुकुलका अंकुर तथा विजयश्रीका पर तेजस्वो वह कश्यपगोत्रसे विभूषित था । उसको कान्ता श्रीकान्ता अत्यन्त कमनीय रूपवाली और सुर विद्यापर-स्त्रियोंमें तिलकस्वरूप थी। राजाके लिए वह वैसी ही प्रिया थी जैसे सुविदग्धोंके लिए वरकविको वाणो प्रिय होती है। इन दोनोंके जिन कुन्थुके नामसे उत्पन्न होंगे, इसमें भ्रान्ति नहीं है। ऐसा केवली कहते हैं। तुम नगर, घर और नन्दनवनको रचना करो और भक्तिसे स्वामी श्रेष्ठको पूजा करो। यह सुनकर कुबेरने स्वर्ण और माणिक्योंसे प्रदीप्त विचित्र नगरकी रचना की। जिसमें हवासे पयमें कपूरको धूल उड़ती है, जिसके सर-नदीके नोरके भीतर हंस रमण करते हैं, जिसके प्रासादोंके शिखर मेघोंको छूते हैं, जहां सुरभित धूम्र रेखाएँ आकाश तक उठी हुई हैं। पत्ता-शय्यातलपर सुखसे सोयी हुई बालहंसगामिनी स्वामिनी श्रीकान्ता रात्रिक अन्तिम प्रहरमें सोलह स्वप्न देखतो है ।।३।। ५. AP जयमंगल । ३. १. A 'कुलकाजयसिरिसिरि । २. A सुकेउ । ३. AF परगाहह तह पहलाहिय । ४. AP घर । ५.. पवाडयपंकयस्यविमीसु; P पवणुद्धयपहकप्पूरफंसु । ६. AP सरिसर । ५. A गयणगय । ८.१ धामरेछ । ९. A सुहमुत्ती । १०. गरगामिगि ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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