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महापुराण
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णियंसहयरकिंकरगुरुसहिउ कुकुठदेविहिं भत्तिइ महि । यहि सुरहरि जंति विविहपुरई दावंति देव देसतरई । धत्ता-एड भरहु अवलोयहि इहु हिमपंतु विवेयहि ॥
पह दिव्व गंगाणइ. पद सिंधु मंथरगइ ।।७।।
इहु दोसइ णिम्मलु पोमसरु सिरिवेविस हिज जियभमरु । इइमवैड पहु पूरियदरिष्ठ बररोहियंरोहियाससरिउ । तुहिणईरि पहु गरुयल अवरु अण्णेक्कु महासयवत्तसरु । हिरिदेवि एत्थु णिच्चु जि वसई हरिवरिसु एउ सरगु वि हसह । इहु एत्थु वहइ णामेण हरि अण्णेक्कु पेक्खु हरिकंतसरि । इई मदर ए गयदंतगिरि इहु सुरकुरु उत्तरकुरु सँसरि । इहु णिसहु णाम महिहरु पत्र इह जीवहिणि विगिछिसक । दिहि देवि एत्थु विरइयभवणे अच्छइ सुररायणिहामण।
एयाई विदेहई दोणि पिय सरि सीया सीओया वि थिय । १० इहु णीलिहि केसरि णाम ददुहुँ दीसह कितीवेविस हुँ । अनुचर और गुरुजनों सहित उसकी कुक्कुट देवोंने भकिपूर्वक पूजा को। आकाशमें देवविमानमें जाते हुए, देव विविध नगर और देशान्तर दिखाते हैं।
पत्ता-इस भरतक्षेत्रको देखो। इसे हिमवन्त (हैमवत क्षेत्र) जानो। मह दिव्य गंगा नदी है, और यह मन्दगामिनो सिन्धु नदी है ||७||
यह निर्मल पा सरोवर है, जो श्रीदेवोसे सहित और भ्रमरों से गुंजित है । घाटियोंसे भरा हुआ यह हैमवत पर्वत है, ये श्रेष्ठ रोहित और रोहितास्या नदियाँ हैं । यह दूसरा महान् हिमगिरि है, और दूसरा महापग्रसरोवर है, इसमें हो देवी नित्य रूपसे निवास करती है। यह हारवर्षे है, जो स्वर्गका उपहास करता है ? यहाँ हरि नामकी नदी बहती है और दूसरी हरिकान्ता नदी देखो। यह मन्दराचल है। यह गजदन्त गिरि है। यह नदियों सहित उत्तरकुरु और दक्षिणकुरु है । यह निषध नामका विशाल पर्वत है । हे राजन् ! यह तिगिच्छ सरोवर है। यहां तिने अपना भवन बना रखा है। सौधर्म स्वर्गके इन्द्र में अपना मन करनेवाली वह स्थित है। हे प्रिय, ये दोनों विदेह हैं और ये सोता और सीतोदा नदियां स्थित हैं। ये नील और केशर नामके सरोवर हैं,
६. AP गित सहयर । ७. A विविप्फुरई । ८. K संतई । ८... Mss. reads एह and इस promiscuously here 1 २. A रंजिय । ३. A हामवर ४. ?
रोहिणि रोहियास व सरित । ५. A तुहिणयरि । ६. Preads this line after 8b. ७. A सुर कुछ । ८. A ससिरि । ९, AP मवणु। १०. A सुप्रराय । ११. AP पिहितमणु। १२. A सिक । १३, A Rो दीसर; P पह दोसइ । १४. A सुद्ध ।