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________________ -६२. ७.६] महाकवि पुष्पदन्त विचित गुणवंतहु गुत्तिगुत्तमण बैध लइउ णविवि गोबद्धणहु । गय णिव्वाणहु खरतवसवण ते चंदविचंद तिलय सवण। भउ णिसुणिवि पक्खि हि कंदियउं अपाण गरहिउ णिदियउं । किमिपिडु ण भविउ मरिवि गय जिणवयर्ण दुछियवेजिय ।। वेंतरसुर जाया भूयकुलि तहिं एक देववणि गिरिगुहिलि । अण्णेक्कु भूयरमगंतवणि भूयाहिव बेणि वि पत्त खणि । तहि जहि अच्छे सुर घणरहहु संदरिसियविमलणाणपहहु । पत्ता--भणिउ तेहिं जडपविखहिं अम्हे हि किमिउलभक्निहिं । तुझ पसाएं आयर्ड दिवभवंतर जायउं ॥६॥ मेहरहदेव पई दिण्णु सुहं आवहि विमाणि आरुहहि तुहुँ । मणुउत्तरमहिहरपरियरि सरसरिकुलसिरिअलंकरिउं । पणयाललक्वजोयणविलु अवलोयहि मणुयखेत सयलु । उवयारह पडिउवयार किह तुह किज्जइ जसु जगि रिद्धिसिह । दुल्लंघु सदेवई दाणवई अहिवंदणिज्जु वरमाणवहं । ता इच्छिवि कीलाभवणु मणि आरुढ उ सुंदर सुरभवणि । निवर्तन प्रकट कर गुणवान गुप्तियोंसे गुम मन गोवर्धन मुनिको प्रणाम कर उन्होंने व्रत ग्रहण कर लिये । प्रखर तप करनेवाले वे दोनों चन्द्रतिलक और विचन्द्रतिलक श्रमण निर्वाणको प्राप्त हुए। अपने जन्मान्तरोंको सुनकर पक्षियोंने आकन्दन किया और स्वयं की गहाँ एवं निन्दा की । उन्होंने कृमियों के समूहको नहीं खाया। वे मर गये। पापरूपी लतासे आहत वे दोनों जिनवरके शब्दोंसे भूतकुलमें व्यन्तरदेव हुए। उनमेंसे एक देबबनकी गिरिगुहामें और दूसरा भूतरमणवनके भीतर। ये दोनों भूत राजा एक क्षणमें वहां पहुंचे जहाँ विमल केवलज्ञानको प्रभाको प्रगट करनेवाले पनरथका पुत्र था। पत्ता-कृमिफुलका भक्षण करनेवाले उन जड़ पक्षियोंने कहा कि आपके प्रसादसे हमलोगोंका दिव्य जन्मान्तर हुआ है और हम यहाँ आये हैं ।।६।। हे मेघरथ देव, तुमने सुख दिया है। आओ, तुम विमानपर चढ़ो, मानुषोत्तर पर्वतसे घिरा हा सर सरित् कुल पर्वतोंसे अलंकृत पैंतालीस लाख योजन विशाल इस समस्त मनुष्य लोकको देख लो। तुम्हारे द्वारा जगमें जिसकी ऋखिका प्रकर्ष किया जाता है उस उपकारका प्रतिकार क्या हो सकता है ? देवताओं सहित दानवोंको जो दुलंय है और जो उतम मनुष्योंके द्वारा बन्दनीय है । ऐसे वह अपने मनमें कोड़ा भ्रमणको इच्छा कर देव विमानमें बैठ गया । अपने मित्रों, २. K 3 1 ३. A दुश्क्षिय वेणि हय; P दुश्वियवेल्लिहय । ४, AP सुन अग्छ । ५. A अहह । ६. AP विष्नु । ७. 1. AP विवाणि । २. P मणुमुत्तर । ३. P परियरठं । ४. AP सरिसर । ५. P तो।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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