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________________ ४१० महापुराण अप्प मोहे ण विडंबियर ससुरण वर जि अवलंबियम् । इंदियपडिबलु रणि णिजिय अरहतणामु तेणज्जियां। मुख सन्मावें सम्मयणिर हुउ अंतिमकप्पि पुरंदरन्छ । सिसु तासु बे वि तेत्थु जि अमर जाया अच्छरकरधुयचमर । दिवि मरिवि बे वि ते भाइवर तिलयंतिम चंद षिचंद गर । भुवि जाया गालवेयर जाख्या सजियथणहि । तं सुणिवि कुमारहिं बोलियर्ड मुणि जम्मसर सम्वेलियर्स । भणु अभयघोसु उप्पण्णु कहि पिउ वसइ जहि जि गच्छामि तहि । जइ चवइ पुंडरिंकिणिपुरिहि शंदणु घणमालिणिसुंदरिहि । पत्ता-तणु मेल्लिवि तियसाहित लायउ तेलुकाहि ।। जो सके पणविजय सो जिणु किं वणिज्जइ ॥५|| तहिं अच्छा देउ सबंधुयणु जोयंतु कूडकुक्कुडयरेणु । परिभमणणमणसहाणणिहि चितंतु घोरसंसारविहि । दिश्वास एहउ षजरि तं सुणिवि खयरमायर तुरि । गय वेणि वि चिरजणणासयहु पयडेप्पिणु अग्गइ जणसयहु। ५ तायत्तणु तहु ससुयत्तण ___ कम्माणुबंधविणियतणई। पांच आश्चर्योंको देखकर उसने अपनेको मोहसे विखण्डित नहीं होने दिया। अपने पुत्रों के साथ व्रत ग्रहण कर लिये । इन्द्रियरूपी शत्रुओंको उन्होंने जीत लिया। उसने अर्हत् प्रकृतिका बन्ध किया । सम्यग्दर्शन में निरत वह सद्भावसे मर गया और अन्तिम स्वर्गमें इन्द्र हुआ। उसके वे दोनों पुत्र भी जिनके ऊपर अप्सराओं द्वारा धमर ढोले जाते हैं, ऐसे देव हुए। वे दोनों भाई स्वर्गमें मरकर चन्द्रतिलक और विचन्द्रतिलक नामसे, जिसके स्तन केशरको जटिलतासे मण्डित हैं, ऐसी गरुड़वेगा धन्यासे उत्पन्न हुए। मुनि द्वारा प्रकट किये गये जन्मान्तरको सुनकर कुमारोंने पूछा-मुनिवर बताइए अभयघोष कहाँ उत्पन्न हुए? जहाँ पिता हैं, हम वहीं जायेंगे ? मुनिवर कहते हैं-पुण्डरीकिणी नगरीकी रानी मेघमालिनीका पुत्र पत्ता-देवराज शरीर छोड़कर त्रिलोकराज हो गया है। जो इन्द्रके द्वारा प्रणम्य है, उन जिनका वर्णन किस प्रकार किया जाये ? ॥५॥ वह देव इस समय बन्धुजनोंके साथ कूट कुक्कुटोंका युद्ध देखते हुए, जिसमें परिभ्रमण नमन और उड़ान को विधि है, ऐसी घोर संसार विधिका विचार करते हुए वहीं पुण्डरीकिणो नगरमें स्थित हैं। दिगम्बर मुनिने यह कहा कि वे दोनों विद्याधर भाई यह सुनकर अपने पुराने पिताके घर गये। सैकड़ों लोगोंके सामने उनका पुत्रत्व सहित पिताका कर्मानुबन्धका ५. १. AP अरहंतु । २. AP वे वि तासु । ३. P जानडुयं । ४. A गमछामु; P गच्छमि । ५. AP तइलोक्का। ६. १. A रयणु।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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