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________________ ४१३ -६२.९.११] महाकवि पुष्पदन्त विरचित इह रम्मु एउ गइणारिवर णरकत पह पपइ अपर । इहु रुम्मिधराहरू पुंडरित सरु एत्थु देव पाणियभरिसे। ___ धत्ता-बुद्धिदेवि इह अच्छा जगि माणउ जो पेच्छा। जिवरसेवासिद्ध तेण णयणफलु लद्धः ।।८।। णिव खेत्तु हिरण्णवंतु णियहि सोवणकूलसरिजलु पियहि । रुप्पय कूल वि इइ एम गय जहि कुद्धहि सीहहिं हथि हय । सो एहु सिहरिगिरि सिहरपिउ सरु एत्थु महापुंडरित हिस। लच्छीदेविहि रुख रमा ओहध्छइ इह वासरु गमई । रत्तारत्तोयसरिहिं सहि अइरावत एवं खेत्तु कहिउँ । फुल्लियवरुमालापरिमलाई वरिसंति मेह धारीजलइं। पिहंति कलमायलीहलाई श्चतमोरपिच्छेजलाई। कच्छाइयाई पिसयंतरई खेमाझ्याई गयरइं वरई। दरिसंति अमर जोयंति पर विम्हइयहियय कंपवियकर । यत्ता-कंदररिकीलियसुर जोइवि णाणागिरिवर ।। अपर मणिराव गनिनि जिणएलिपिबई ॥५॥ यह कोतिदेवीके साथ दिखाई देते है, यह रम्यक पर्वत है। यह श्रेष्ठ नारी नदी है और यह दूसरी नरकान्ता नदी बहती है । यह कमी महीधर है, यह पुणरीक नामका हे देव, जलसे भरा हुषा सरोवर है। ___पत्ता-यहाँ बुद्धिदेवी है, जो विश्वके मानको देख लेती है। उसने जिनवरको सेवासे सिद्ध नेत्रोंके फलको प्राप्त कर लिया है ||८|| हे नृप, यह हैरण्यवत क्षेत्र देखो। और स्वर्णकूला नदोका जल पियो। यह रूप्यकूला नदो इस प्रकार बहतो है, जहां कव सिंहोंके द्वारा हायो मारे जाते हैं ? यह वह, शिखर प्रिय शिखरी पर्वत है। यह महापुण्डरीक सरोवर है जो लक्ष्मीदेवीके द्वारा चाहा जाता और रमण किया जाता है। यहाँ रहकर वह अपने दिन व्यतीत करती है। रक्ता रकोदा नदियों के साप यह ऐरावत क्षेत्र कहा आता है। जहाँ मेघ खिली हुई वृक्षमालासे सुगन्धित धाराजलोंकी वर्षा करते हैं। जहां धान्य और कदली फल पकते हैं। अपने पक्षोंसे सुन्दर मयूर नाचते रहते हैं । जिसमें कच्छादि देशान्तर और क्षेमादि नगर हैं । देवता लोग दिखाते हैं और मनुष्य विस्मित हृदय तथा अपना हाथ हिलाते हुए देखते हैं । पत्ता-जिसके पहाड़ोंकी घाटियोंमें देय कोसा करते हैं,ऐसे नाना गिरिवरोंको देखकर तथा अकृत्रिम मणिकिरणोंसे लाल जिन प्रतिमाओंको बन्दना कर १९11 १५.AP पहु, probably his confounded with ए।१६. A रम्मि । १७. AP एह । ९. १. A वरिसंत । २. A जलधाराई। ३. A°की । ४. AP चंति । ५. पियलाई । ५.P दरिसति य अमर । ७. P विभइयं । ८. A दरकेशियं ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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