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________________ ३७० ५. १० एम रुयंति तेण सा णिजइ एहि पणु व वेrपयट्टल महापुराण १५ मत्तमयूर पररमणीहरणेण णिवेसिय लोलइ विन्ज सुतारारूव उस भत्ता किं जायढं अक्ख मायाविण हउं पट्टी विसरिसवि सरस वियणगुरुकी दणदणु पुंजिवि घसा - पियविओथयंपिय संपतु जिवसंगठ ता संपत्त विणि विज्जाहर तेहिं तिषिपुत्त भोलषिखड एक बुझियमायाम पिययमरिति विलु सिब्जइ । गमि पुणा पल्लए । पडिआय सुंदरिय मंदड | रसिला तेज वरिसिय जाणिव गद्दिय कंस जमदूएं । दीस बर्णकमलु विच्छायसं । - कुकुडफणिणा करयलि दट्ठी । इय भणति पाणेहिं बिकी। सूरत मणिजलणु परंजिवि । परिसेसियइहपर द्दि || रवइ सर्लाहि वलग्गज ॥११५॥३ १६ [ ६०.१५.१ सयणविहुरहूर असिवरफरकर । जिणि वणि मरंतु णोवैविखेड | ताडिय झति वामपायों ! १५ इस प्रकार विलाप करती हुई वह उसके द्वारा ले जायी गयी । प्रियतमके विरहमें वह तिल-तिल क्षीण हो रही थी । यहाँपर पवनके समान वेगसे भागा हुआ हरिण गाग गया। राजा लौट आया। जिसमें मत्त मयूरवृन्द नृत्य कर रहे हैं, ऐसे सुन्दर लता-मण्डपमें आया । परस्त्रीके हरण करनेवालेके द्वारा स्थापित उसी रत्न- शिलातलपर सुताराके रूपमें हिलती हुई विद्या दिखाई दी। यह जानकर कि वह यमदूत ( मृत्यु ) के द्वारा ग्रहण कर ली गयी है पसिने पूछा"क्या हुआ, तुम्हारा मुखकमल कान्तिहीन दिखाई क्यों दे रहा है ?" वह मायाविनो कहती है कि कुकुर सपिके द्वारा हथेली में काटी गयी मैं नष्ट हो रही है। असामान्य विषरसकी वेदनासे भरी हुई और यह कहती हुई, उसने प्राण छोड़ दिये। लाल चन्दनका ईंधन इकट्ठा कर सूर्यकान्तमणिको ज्वाला से आग लगाकर -- पता - प्रिया वियोगसे कविता हुआ इस लोक और परलोकके हितको छोड़ देनेवाला, कामदेव वशीभूत होकर वह राजा चितापर चढ़ गया ||१५|| १६ इतने में दो विद्याधर वह आये, जो स्वजनोंके दुःखको दूर करनेवाले और असिवररूपी अस्त्र हाथमें लिये हुए थे। उन्होंने त्रिपुष्ठके पुत्रको देखा । एकान्त वनमें मरते हुए उसकी उन्होंने उपेक्षा नहीं की । मायाके मार्गको समझनेवाले एकने बायें पैर के अग्रभागसे शीघ्र उस विद्याको १५. १. K मृ । २. A कमलवयणु; P वयणु कमलु । ३. A ईषण ४. A आयामि १६. १. AP ण उपेक्षित ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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