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-६०, १७.६ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
पायड करिवि निवेदकखालिय aftes विभैव अवलोइषि जंबुद्दीवि भरतंतरि दाहिणसेविहि जो पह पुरि इवं तहिं पहुणा संभिण्ण संजय पणणि सुख दीवयसिहु अतये अम्द सुंदर चिरु परिभमिवि रमिषि पिष्ठ बोल्लिवि पइव परमेसरि अहिमाणिणि
पत्ता - णिरु उठिय अच्छमि हा सिरिविजय पधावहि
वि पणट्ट भीयवेया लिय खबरें भणि णिणि मणु कोइषि । realete हारे । कीलासुर । अमियते किंकर माणुण्णड । महुं ओच्छ णं कति बिहु | अबलोयंति सिरिरिकंदर । गयगुल्ललिय आम षणु मेल्लिवि । सारुति णहि णिसुणिय माणिणि । बल्ल कर्हि छमि ॥ कुढि लम्महि म चिरावहि ||१६||
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इg अवसर तुहु बट्टह बंधव । प जीवंति ति मेई किं खल । मई रोवंति काई ण णिवारहि । महुं लग्गं कुपुर निवारि । मई लहु हि पासि भत्तारहु । पई हउ जणणसरिच्छु नियच्छमि ।
हा हा अमियतेय दुंदुहिरव हा हा मामतिविट्ठ महाबल हा सासुर देवर साहारहि हा हलहर पई अप तारिक हा हे घोर जार जैगि सारहु विमर्हेतुहुं तो वि ण इच्छमि
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२. P शिव । ३. AP विभवसु । ४. P ते । ५. A समय वे यहं । ६. AP कह पर्छ । १७.१ APकि मई २. A ण वारिठ। ३ AP जगसार । ४. AP मयणु
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ताड़ित किया और उसे प्रकट कर राजाको बता दिया, वहीं भीम वैतालिक विद्या नष्ट हो गयी । विस्मयके वशीभूत राजाको देखकर विद्याधर बोला- "मन लगाकर सुनो, जम्बूद्वीपके भरसक्षेत्रमें विजय पर्वतकी दक्षिण श्रेणी में, जिसके उद्यानों में देव कोड़ा करते हैं ऐसे ज्योतिप्रभ नगर है । मैं उसका राजा सम्भिन्न हूँ। मानसे उन्नत, अमिततेजका अनुचर । मेरो प्रणयिनी से दीपशिख नामका पुत्र हुआ, वह मेरे साथ है मानो कान्तिके साथ चन्द्र हो । हे सुन्दर, इस प्रकार हम पितापुत्र हैं। पर्वतकी घाटियों और गुफाओं को देखते हुए खूब परिभ्रमण कर, रमण कर और प्रिय बोलकर वन छोड़कर जैसे हो आकाशमें उछले, वैसे ही हमने पतिव्रता स्वाभिमानिनी एक मानिनीको आकाशमें रोते हुए ( इस प्रकार ) सुना ।
पत्ता- "मैं अरपन्त उत्कण्ठित हूँ । है प्रिय, मैं तुम्हें कहीं देखूं ? हे श्रीविजय दोड़ो, पीछे लगो, देर मत करो" ||१६||
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हा हा ! दुन्दुभिके समान शब्दवाले अमिततेज, हे भाई यह तुम्हारा अवसर है। हे ससुर त्रिपृष्ठ और महाबल, तुम्हारे जीवित रहते हुए दुष्ट मुझे क्यों ले जा रहे हैं ? हे सास, हे देवर, तुम मुझे सहारा दो ।" मुझ रोती हुईको तुम मना क्यों नहीं करते ? हे बलभद्र, तुमने अपना उद्धार कर लिया, मेरे पीछे लगे हुए कुपुरुषको तुमने मना नहीं किया । हा है घोर जार, जनमें श्रेष्ठ मेरे पति के पास तुम मुझे ले चलो, यदि तुम कामदेव हो तो मैं तुम्हें नहीं चाहती। मैं तुम्हें