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________________ ३६३ -६०. ७. १२ ] महाकषि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-परिणिइ पसरियदुक्खा महुँ उज्झतहु मुस्खइ । भुंजहि भणिवि विसाला पित्त पराडय थालइ ॥६॥ तुह महुं वइवें दिण्ण बंभणु पत्तिउं तेरर अच्छा कुलहणु। उजंउ करहि ण भरहि कुटुंबलं । लोयणजुयलु करिवि आयंच। एम जाम धरणीइ पबोलि उ । ता महुं हियवर णं झसंसलिउ । अइणियडर्स जि अलणु पजालिन । इंध इंधणु केण वि चालिउ । तक्खणि सिहिफुलिंगु नच्छलियउ आविवि जर्लयरि गरयइ घिवियउं। ५ इ थिउ तं जोयतु सइत्तउ ता कंतइ सिरि सलिलिं सित्तम । उत्तरु महुँ ण लिलपतिहि मैई सर विह सिवि भासि पत्तिहि । जं इंगालड पहिउ घरीलइ तं तडि पंडिही पोयणपालइ । जं पई पाणिएण अहिसिंघिउ तं जाणहि हर रयणहि अंचित । सा" जंपइ पइ बुद्धिहि भुल्लर चप्फलु' झंखइ चंदगहिल्लउ । पत्ता-उज्झणिझुणपिङ महरू वि कपणह विपि ॥ परु जणवाल कि वुचई कुलघरणिहि वि ण ससाइ ॥७॥ पत्ता-जिसका दुःख बढ़ रहा है ऐसी गृहिणीने भूखसे जलते हुए मुझपर, 'खा लो' कहकर बड़ी-सी थालीमें कोड़ियां डाल दी" ||६|| देवने सुम जैसा ब्राह्मण मुझे दिया। तुम्हारा कुल धन इतना ही है, उयम कर अपने कुटुम्बका पालन नहीं करते हो-अपनी दोनों आंखें लाल-लाल करते हुए जब इस प्रकार स्त्रीने कहा तो मेरा हृदय प्रज्वलित हो उठा। मेरे अत्यन्त निकट जलती हुई आग थी। किसीने चूल्हेमें आग पला दी। तत्क्षण आगको चिनगारो उचटी और आकर विशाल कौडीपर गिर पड़ी। मैं सावधान होकर उसे देखता हुआ स्थित था। सब पत्नीने सिरपर उसे सींच दिया। (बोली) "बोलते हुए मुझे तुम उत्तर नहीं दोगे।" सब मैंने थोड़ा हैसते हुए पत्नीसे कहा-"कोडोपर जो अंगारा पड़ा है वह पोदनपुरके राजापर बिजली गिरेगी और जो तुमने पानीसे उसे सींचा है, उससे तुम यह जानो कि मैं रत्नोंसे अंचित होऊंगा?' वह बोलो---"पति बुद्धिसे भोला है, चन्द्रमासे अभिभूत ( पागल ) वह मिथ्याभाषासे सन्तप्त होता है। घत्ता-निर्धन व्यक्तिके द्वारा कहे हएको आग लग जाये, मधुर होते हुए भी { कथन ) कानोंके लिए बुरा लगता है, दूसरे लोग क्या कहेंगे, खुद कुलीन गृहिणीको गरीब ( पति ) की बात अच्छी नहीं लगती" ||७H ७. १. AP उज्जम् । २.PRससिल्लि । ३. AP पजालिन । ४. AP क्या पालयरि । ५. A & जोयतु । ६. A omics this foot, | ७. P वराडा। ८. P तडि परिहीसी। ९. AP जाणमि | १०. A सह जंपह; P स वि जंपर। ११. बिप्पलु । १२. AP रुप ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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