________________
३६२
५.
१०
महापुराण
दूसह विसेय परीसहभग्गड धत्ता- - अंतरिक्खसुणिमित्त भउमुवि खेपमाणउं
सरु गंभीर इयरु चलक्खि लक्खणाई कमलाई पसत्थई क्खामि जंजिह सिविणंतरु तं सिक्खिवि अट्ठपया र डं he frog पुरोहित सुरगुरु दिवि आयउ पोमिणिखेडहु सोमसम्म णिजणणीभायरु मेलावि हवं ते ससुरयदिष्णु दव्बु भुंजंत हर्ज पर केवल पढमि णिमित्त मामसमपि कंचणु गिट्टिउ महुं कडिल लग्ग कोबीण
दुहियहि
[ ६०.१.११
काई मि जीवियवित्तिहि लग्गष्ठ । सिक्खिल गणक्खत्तई ॥
अंग अंगणिवाणडं ||५||
६
जणु पुणु तिलया सिक्खिव । जामि भूय छिपणे वत्थई । पावर जेण सुहासु परवरु | इय पहउ निमित्त सवियारवं । तासु विसीसु विसार महुं गुरु । फलिहालंकि कुलिसकवाडछु । मई दिव तहिं कयपरमायरु । लोमोज नियहि सहर मुहियहि । दोहं मि गलिउ कालु कीलंत । किंपि बि शिवण समज्जमि वित्तरं । वरि दारिद्दु परिट्ठित । तो वि भामिकासु वि दी।
ण
मानो महीरूपो नारीने कुण्डल पहन लिया हो । असह्य विषय परिषद्ले भग्न होकर में किसी प्रकार fontवृत्ति लग गया ।
पत्ता- मैंने अन्तरिक्ष-निमित्त विद्या सोखी और ग्रह-नक्षत्रोंकी विद्या सीखी। क्षेत्र प्रमाण सहित भूमिश्रिद्य अंगको रचनासे सम्बन्धित अंग-निमित्त सोखा ॥५॥
६
और दूसरा गम्भीर स्वर निमित्त सीखा, तिल आदिके द्वारा व्यंजन निमित्त सीखा। कमलादि प्रशस्त लक्षण निमित्त सीखा। चूहों मादिके द्वारा काटे गये वस्त्रोंसे सम्बन्धित छिन्न निमित्त मैं जानता हूँ। स्वप्नान्तरमें जो जैसा है उसका व्याख्यान करता हूँ कि जिससे नरवरको शुभाशुभ फल प्राप्त होते हैं। इस प्रकार इन विचारपूर्ण आठ प्रकारके निमित्तोंको सीखकर, सिंहरथ के पुरोहित बृहस्पति, उनका शिष्य विशारद मेरा गुरु है। उनकी वन्दना कर, स्फटिकमणियोंसे अलंकृत वज्र किवाड़ वाले पपिनीखेट नगरसे आया हूँ । सोमशर्मा मेरी माँका भाई है, अत्यन्त आदर करनेवाले उससे में मिला। उसने अपनी कन्या हिरण्यलोमासे मेरा मिलाप करवा दिया (विवाह कर दिया ) । ससुरका दिया हुआ बन खाते हुए और कीड़ा करते हुए हम दोनों का समय बीत गया। मैं केवल निमित्तशास्त्रका अध्ययन करता रहता, मैं बिलकुल भी धनका अर्जन नहीं करता । ससुर के द्वारा दिया गया धन नष्ट हो गया और घरमें भयंकर दारिद्रय प्रवेश कर लिया। मेरो कमरमें केवल लँगोटो बची। तब भो में किसीसे दोन वचन नहीं कहता था |
६. APबिसहपरोस ।
६. १. A fas; P छित्तई । २. P हियहि । ३. A लोमंजशियहि । ४. AP ससपर । ५. A
सुमुर ।