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महापुराण
[६०.८.१
इय चिंतंतु घरहु णीसरियउ णाम अमोहजीह ओहेच्छमि जइ चुकइ नृवं केवलिदिट्टर सउणु मडारा सञ्च सुचा तं तहु भणित चित्ति समाइउ भगइ सुबुद्धि कुलिसमंजूसहि वसहि गराहिव मन्झि समुदहु चवह सुमाइ पइसहि परदुश्चरि मइसायरु भासइ ण तसिजा जे लिहियउं तं अग्गइ थक्कर घसा-सुरमरि हथिरथि
धरियणराहिवमुई
हउं तुम्हार पुरि अवयरियड । पट्टणणाहहु पलउ जियच्छमि । तो जाणहि चुकद मई सिट्टई। करु पडियार जेम तुई रुबाइ । राएं मंतिहि ययगु पलोइउ । आयससंस्खलवलयविह्नसहि । जेणुव्वरसि सदेह विमबहु । रुप्पयगिरिवरगुह षिवरंतरि। परवाइ जिणवरिंदु सुमरिजा। जमकरणहु मरणहु को चुकाह । कारवाया ।। भासिउं बुद्धिसमुहें ।।८।।
१.
विवरि णिहित्तेउ वित्त पहाणउ गेहि जयंतीपंतिहिं चेविड अच्छइ तीहि वि संझहिं पहायउ
सुणि महिवइ दिद्रुतकहाणउ । सीहउरइ सिरिरामासे विइ । खलु इपिठ्ठ सोमु परिवाइउ।
यह विचार करते हुए घरसे निकल पड़ा और मैं तुम्हारी नगरीमें आया। मेरा नाम अमोघबिह्व है। मैं यहाँ रहता हूँ और नगरके राजाका नाश (प्रल 2 ) देखता हूँ। हे राजन्, यदि केवलज्ञानीका कहा चूक सकता है, तो समझ लीजिए कि मेरा कहा भी चूक जायेगा। हे आदरणीय, स्वप्न सच्चा कहा जाता है, तुम्हें जैसा ठीक लगे वैसा प्रतिकार कर लीजिए । तब उसका कहा राजाके चित्तमें समा गया। उसने मन्त्रीका मुख देखा । सुबुद्धि मन्त्री कहता है-"हे राजन्, तुम लोहेको शृंखलाओंके समूहसे अलंकृत वज्रमंजूषामें स्थित होकर समुद्र के भीतर रहो जिससे तुम अपनी देहके विनाशसे बच सको।" सुमति नामका मन्त्री कहता है कि "दूसरों के लिए दुर्गम विजयाई पर्वतकी गुफाके विवरके भीतर प्रवेश करो।" मतिसागर मन्त्री कहता है-"हे राजन, आपको पीडित नहीं होना चाहिए और जिनवरका स्मरण करना चाहिए। जी लिखा हुबा है, वह आगे आयेगा । यमकरण और मरणसे कौन बचता है ?"
पत्ता-सुमेरु पर्वतके समान स्थिर चित्त, तथा जिसने प्रभुको रक्षाका प्रयरन किया है और जिसने राजा को मुद्राको धारण किया है ऐसे मतिसागर मन्त्रीने कहा
"हे राजन्, विवरमें निहित मुख्य वृत्तान्तको दृष्टान्त-कथानकके रूपमें सुनिए-वबपंक्तियोंसे प्रकम्पित तथा लक्ष्मीरूपी रमणीसे सेवित सिंहपुर में सोमशर्मा नामका अत्यन्त दुष्ट ८. १.AP जा अच्छमि । २. AP णिव । ३, AP करि । ४. AP जेणुव्यरहि । ९. १. A णिहित्तह। २. AP सोम्मु परिवायन ।