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-५९, १५. २२ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित
दामोयरि गइ गरयह भीमरहंगकरि
. मारवियारणिवारइ णिव्वुइ सीरंधरि । दोहकाल वोलीणइ णरणियरामहरि
धम्मणाहतित्वंतरि बयणसंतियरि। सुणि जे जाया भारहि भासुरचनषद
बेषिण सयलपलपालय जिणकमणिहियमइ । एत्थु खेत्ति महिमडलि णयरि विचितपरि
___ मोरकीरकुरराउलि सीमारामसरि । तिथि वासुपुजेसह दुद्धर षय धरिवि
__णरषइ णामें राणउ दुकर तउ करिवि । हुउ मज्झिमगेवजहि अहममराहिवा
जिणधम्में पाविजइ सासयसोक्खगइ । कवणु गहणु देवसणु परियत्सणसहि
एउ बप्प मई जाणिउं लोपहिं वि कहिलं । सत्तबीससायरखइ जाय मरणु सुरि
___ सजहावलिसिहरुम्भडि सिरिसाफेयपुरि । इह सुमित्तणरणाहह सुहिसंमाणियहि
इंसवंसकलसरहि भहाराणियहि । मघउ णाम हूय उ सुन सुयणाणंदयरु
असियरपसमियरिउतमु भमिल गप दिवसयस।
चक्रको हाथमें रखनेवाले नारायणके नरक जानेपर, कामदेवके विकारका निवारण करनेवाले बलभद्र के निर्वाण प्राप्त कर लेनेपर, नरसमूहकी आयुफा क्षय करनेवाले तथा बुधजनोंको शान्ति प्रदान करनेवाले धर्मनायके तीर्थकालका लम्बा समय बीसनेपर भारतमें जो चक्रवर्ती हुए उन्हें सुनो। ये दोनों ही धरतीका पालन करनेवाले और जिनवरके चरणोंमें अपनी मति रखते थे। इसी भरत क्षेत्रके महीमण्डलमें विचित्र घरोंकी नगरी थी जो मोर, कीर और कुरर पक्षियोंके शब्दोंसे व्याप्त और सीमोधानों तथा नदियोंसे युक्त थी। वासुपूज्यके तीर्घकालमें नरपति नामका राजा कठोर व्रत धारण कर और दुष्कर तप कर मध्यम प्रैवेयक विमानमें अहमेन्द्र देव हुआ। जिनधर्मसे शाश्वत सुख गति पायी जा सकती है, फिर परिवर्तनशील देवस्वको ग्रहण करनेसे क्या? इस बातको मैं बेचारा जानता हूँ और लोगोंने भी यही कहा है। सत्ताईस सागर समय बीतनेपर देवकी मृत्यु हुई । सौषावलियोंके शिखरोंसे उद्भट श्री साकेतपुरीमें राजा सुमित्रकी सज्जनोंके द्वारा सम्माननीय, हंसकुलके शब्दवाली भद्रा नामको रानीसे सुजनोंको आनन्द देनेपाला मघवा नामका पुत्र हुआ। वह अपनी तलवाररूपी किरणसे शत्रुरूपो अन्धकारको शान्त करनेवाला घूमता हुआ नव दिनकर था।
१५. १. AP सीरहरि । २. A दीहमालु; P दोहकालि । ३. P"णिस्याउँ । ४. A धम्मवेवहित्यकरि;
P धम्मदेवतियसरि । ५. APइलवालय । ६. A विचित्तयार। ७. Pणामे। ८. P भमित वि दिवसयक।
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