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________________ ३४६ महापुराण [५९८.२सेणिय हलहरचकहराणं णिसुणहि परियं णरपवराणं । णवसासंचियवसुमइवेहे जंबूदीवे अवरविदेहे। णिवसइ पारवा परदुषिसहो वीयसोयणयरे णरवेसहो। सो संसारजायणिवेयर दमवरपासे मुद्धिर्समेयस । काउं तवचरणं जिणदिढ बिसभिगो शानिg| पत्तो गिरसणविहिणा सग तं सहसारं मोयसमगे। अट्ठारहजलणिहिपरिमाणे सस्सेयारहमे बोलीणे। जझ्या तझ्या इह रोयगिहे णयरे घरसिरणश्चियबरिहे। णाम सुमित्तो अप्पटिमल्लो दुजणहियउप्पाइयसलो। जुज्झे सो मुयबलमयमलो रायसीहराएण णिहित्तो। ताम तेण परिमलिथणेते परिभवदुक्खपरंपरछिमें। धत्ता-णियराजु मुएप्पिणु राणयहु देप्पिणु जुण्ण तणु व गणेप्पिणु ।। चिण्णजंबई दूसह कयवम्महबहु कण्हसूरि पण प्पिणु ८॥ ranrammarnmarrrrrrrAmarakArAmrannientre णवर पमाएं माणकसाएं। भीमें रुद्ध हियवर कुद्ध। खरतवशीण सासु अयोण । पत्थइ तवलु होजच मुयबलु। आगामिणि भवि भरवि रउरवि । श्रेणिक, हलधर और चक्रवर्ती नरश्रेष्ठोंका चरित्र सुनो। जिसकी भूमिरूपी देह नवधान्योस अंचित है, ऐसे जम्बूद्वीपके अपर विदेहके वीतशोक नगरमें शत्रुको सहन नहीं कर सकनेवाला राजा नरवृषभ निवास करता था.। संसारसे वैराग्य उत्पन्न होनेपर शुद्धि सहित पह दमवर मुनिके पास, जिसमें केवालोंचकी निष्ठाको सहन किया जाता है, ऐसा जिनके द्वारा उपदिष्ट तपको कर उसने अनशन विधिके मार्गसे भोगसे परिपूर्ण सहस्रार स्वर्ग प्राप्त किया। उसकी अठारह सागर प्रमाण आयुमें-से जब ग्यारह सागर आयु निकल गयी तो जिसके गृहशिखरोंपर मयूर नृत्य करते हैं, ऐसे राजगृह नगरमें अप्रतिमल्ल और दुर्जनोंके हृदयमें शल्प उत्पन्न करनेवाला सुमित्र नामका राजा हुआ। भुजबलसे प्रमत्त वह युद्ध में राजसिंह राजाके द्वारा पराजित कर दिया गया । तब पराभवको दुःख-परम्परासे अभिभूत अपनी आंखें बन्द किये हुए वह पत्ता-अपना राज्य छोड़कर और पुत्रके लिए देकर जीर्ण तृणकी तरह समझकर जिन्होंने कामदेवका नाश कर दिया है, ऐसे कृष्णमूरि मुनिको प्रणाम कर उसने असह्य व्रत स्वीकार कर लिया ||८|| परन्तु नहीं, वह भीषण मान फषायसे रुद्ध अपने हृदयमें क्रुद्ध हो उठा। अत्यन्त तपसे क्षोण वह अज्ञानी साधु यह तपफल मांगता है कि आगामी भवमें मेरा ऐसा बाहुबल हो, जिससे २. Pणरवासहो। ३. P संसारह जाय । ४. सम्मेमठ । ५, A रायहरे। .A पठ; P सन | ९. १. AP अजाण । २. AF भटमणि ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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