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________________ -५९. १०.४] महाकवि पुष्पदन्त विरचित जेण बियारमि सो रिस मारमि। इथ गिझाइवि देहु पमाइषि । सझकिलेसें मुल संणासें। थिई सुरविंदर हु माहिदइ। जाउ मणोरमि अणुवमतगुरमि। आउअपिंप रुस । जहिं जिणगीयई अच्छरगीयई। जहिं सवणिज्नई सुइरमणिजई। जित्तव राउ सुमित्तउ। सो पस्थिवहरि णं मत्तउ करि। हिंडिवि भवषणि विहुरावलिघणि । फलियधरायलिइह कुरुजंगलि । पंदुरगोरि हूयट गयउरि । राउ कुसीलभ सो महुकीलन । पत्ता-करयलकरवाल मिडिकराल पुहइ तिखंड पसाहिय ।। मंडलिय मउद्धर जेम धुरंधर तेम तेण घरि वाहिय ।।२।। रज्जु कसिणसुहसार अणेहुत्तिहिं णिय , कइयइ वरिसई जव्यहुँ तहु जीविउ थिय है । तइयहं खगरणाहहु सीहसेणणिवहु । इक्वाहि सुपसिद्धह इह भरहन्भयतु । मैं भटकोलाहलसे भयंकर युद्ध में विदीर्ण कर शत्रुको नष्ट कर सकूँ, यह ध्यान कर और अपना शरीर छोड़कर, शल्यके क्लेश और संन्याससे मरकर वह देवसमूहवाले माहेन्द्र स्वर्गमें उत्पन्न आ। वह सन्दर अनुपम तारुणमें जन्मा। उसकी अनिन्द्य आय सात सागर प्रमाण थी। जहाँ जिनवरसे सम्बन्धित गीत और अप्सराओंके सुचिर मनोज्ञ गीत सुनाई देते हैं। और जिसने पहले राजा सुमित्रको जीता था, वह श्रेष्ठ राजा राजसिंह मानो मत्तगज हो । कष्टोंसे भरपूर संसाररूपी वनमें भ्रमणकर, जिसमें स्फटिकका धरातल है, ऐसे कुरुजांगल में सफेद गोपुरोंवाले गजपुर ( हस्तिनापुर ) में खोटी चेष्टावाला मधुकीड़ नामका राजा हुआ। पत्ता-जिसको भृकुटियां भयंकर हैं ऐसे उसने हाथमें तलवार लेकर तीन खण धरती सिद्ध कर ली। मदसे उद्धत माण्डलीक राजाओंको वह बैलोंकी तरह अपने घर हाक लाया ॥॥ समस्त सुखोंसे श्रेष्ठ राज्यका अनुभोग किया और जब उसका जीवन कुछ वर्षोंका रह गया तभी खगपुरके स्वामी इक्ष्वाकुकुलके सुप्रसिद्ध भरतराजाके अंकुर सिंहसेन राजाको ३. A पिय । ४. P जिणगेहई । ५. A अच्छरिगीयई । ६. A तिखंड चाहिय । ७. AP मजाघर । १०. १. A कसण । २. AP अणुइंजिधि । ३. A गोवरणाहह; K गोउर but corrects it to लगवर।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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