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________________ महापुराण [ ३८. २०. १३घत्ता--'माहे मासे सियणवमिदिणे रोहिणिरिक्खि गयासे ।। अवरण्डा केसलोउ करिवि लक्ष्य दिक्ख परमेसें ॥२०॥ जे धम्मेल्ल विमुक्क सुबत्ते ते सुरणाहे मणिमयपत्तें। लेवि पित्त खीरपणवणार को णउ करइ भप्ति जहणीरइ । विसापरीसह रिउहु ण संकिर नृवसहासु ते सहुं दिक्ख किट । णाणु चउत्थउ खणि उप्पण्ण छट्टववास बउ पडिवण्ण। सज्माणयरिहि बीयई वासरि किउं पारणलं बंभरायहु धरि । कुसुमारे सुशीयायः पंचच्छरियई तहिं संजायई। गेहणेहबंधणु विच्छिण्ण बारहवरिसई तड संचिण्णवं । पूसहु सुक्कपक्खि संपत्ता एयारसि रोहिणिणक्खत्तइ । भावाभावालोयविराइल केवलणाणु तेण उपाइउ । १० हय दुंदुहि णं गज्जिउ सम्गें आय देव दिसिधि दिसहुँ मगे! घसा-चत्तारि सयाई सरासणहं सड्ढई देहु जिणिंदहो।। ___ अमरिंदे दूरासकिएण मण्णिउ सरिसु गिरिंदहो ॥२१॥ पत्ता-माघ, माहके शुक्लपक्षको नवमीके दिन रोहिणीनक्षत्रके अपरालके समय केश लोचकर दीक्षा ग्रहण कर ली ॥२०॥ सुन्दर मुखवाले उन्होंने जो बाल छोड़े उन्हें देवेन्द्रने मणिमय पात्रमें लेकर क्षीर समुद्रके पानीमें डाल दिया, नीरज ( रजरहित निष्पाप ) मुनिकी भक्ति कौन नहीं करता। विषयरूपी परीसहके शत्रुसे शंका नहीं करते हुए, एक हजार राजाओंने उनके साथ दोक्षा ग्रहण कर लो। एक क्षणमें चौथा ज्ञान उन्हें उत्पन्न हो गया, छठे उपवाससे उनका व्रत सम्पन्न हुआ, दूसरे दिन, अयोध्यानगरीमें उन्होंने ब्रह्मराजाके यहां पारणा की। कुसुम वर्षा, देवनगाड़ोंका निनाद और पांच महाश्चर्य वहाँ हुए, घरके स्नेहका बन्धन छिन्न-भिन्न हो गया, बारह वर्ष तक उन्होंने तपश्चरण किया । पूष माहका शुक्लपक्ष आनेपर ग्यारस रोहिणी नक्षत्र में विश्वके समस्त पदार्थोंको प्रकाशित करनेवाला केवलज्ञान उन्हें उत्पन्न हो गया। देव दुन्दुभियां आहत हो उठौं, मानो स्वर्ग गरज उठा हो, देवता विशा और विदिशाके रास्ते आये । पत्ता-जिनेन्त्रके साढ़े चार सौ धनुष ऊँचे शरीरको देखकर दूरसे आशंकाको प्राप्त इन्द्रने उन्हें सुमेरु पर्वतके समान समझा ॥२१॥ ११. A P माहहो मासहो। २१.१.A P°वते । २.A P विसहपरीसह । ३. A P णि । ४. A P 43 । ५. A तोपा । ६. AP पम्ह । ७. P मेहि गई। ८. A P भावाभावलोएं पविरायउ। ९. A"विदिसह मग्गे; P°विदिसि णहग्नें।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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