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________________ -३८. २०. १२) महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता--सुहूं वंछ पर तं पर लहइ मरणह ससई ण धुक्काद।। ''इच्छाभयपरषसु एकु जणु जममुकुहह दुक्का ॥१९|| २० तांबाइय लोयंतिय सुरवर से भणति जय जगगुरु सुरषर। अंग चित्तंडिंमु संथषिय णाणणिहेलणि पई संथवियड। छडैहि पणइणि कंचर्णगोरी धरैहि मुवणसंबोहणगोरी। गइदुचरित्तकम्मसंताप अजियसेणु णिहियड संताणइ । पणिव पुत्त चरसु संताणा सयलमहीयलकयसंताणइ । सहि अवसरि ण छण्णु विमाणहिं पत्तहिं गिवाणेहिं विमाणिहि । किउ दिक्खाहिसेस तियसेसहि चिज पहु पसस्थतियसेसहि । गय खग सुर णियसिवियाजाणे फलतरुणविएं पवरुज्जाणे । णार्य णचित सहेवणामें सो सोहंतु सुद्धपरिणामें। णिच्च करति पणयफलई सई जहिं सरि सह मुयंति कलहंसई । तडगंधवगीयकलहंसई ताई चलणि रसियई कलहंसई । तहिं सत्तच्छयतलि सुणिसण्णउ जिणु जिणंतु पत्तारि वि सम्णः । पत्ता-सुखकी इच्छा करता है परन्तु उसे नहीं पाता, मोतसे डरता है ( त्रस्त होता है ) परन्तु चूकता नहीं, इस प्रकार इच्छा और भयके अधीन यह जीव उन यमके मुख रूपी कुहरमें प्रवेश करता है ।।१९॥ २० इतनेमें लौकान्तिक देववर आये। वे देववर कहते हैं कि हे विश्वगुरु आपकी जय हो, आपने चित्तरूपी बालकको धैर्य बैषाया, और उसे ज्ञानरूपी घरमें स्थापित किया। स्वर्गको तरह गोरी कामिनीको आप छोड़ते हैं, और भुवनको सम्बोधित करनेवाली गोरी ( सरस्वती) को धारण करते हैं । दुश्चरित कर्मको सन्तान परम्परा चले जाने पर उन्होंने अजितसेनको कुलपरम्परामें स्थापित किया और कहा-हे पुत्र, तुम कुल-परम्परामें चलना, और समस्त विश्वको निज सन्तान समान मानना । उस अवसरपर आकाश विमानोंसे आम्छादित हो गया। आये हुए असंख्य देवेन्द्रोंके द्वारा दीक्षाभिषेक किया गया। प्रशस्त स्त्रियों के द्वारा अर्चा की गयी। विद्याधर और देव अपने-अपने शिविकायानसे चले गये। वह अपने शुद्ध धारणाओंसे इस प्रकार शोभित है, जिस प्रकार, फलसे योवनको प्रास, सहेतुक नामका विशाल उद्यान जैसे झुक गया हो। जहाँ कलहंस स्वयं नित्य प्रणयकलह करते हैं और जहां नदीमें वे सुन्दर स्वर करते हैं। जहाँ नट गन्धयोंके गीतोंको सुन्दरताको नष्ट करनेवाले उनके पैरोंमें सुन्दर नूपुर बज रहे थे, ऐसे उद्यानमें सप्तपर्णी वृक्षके नीचे बैठे हुए, चार संज्ञाओं ( आहार, निद्रा, भय और मैथुन ) को जीतते हुए, आशा रहित परमेश जिनवर ने। १०. P पर गउ। ११. A इच्छाहय परवसु; न मिच्छाभयपरवसु । २०.१.AP तावाश्य । २.पित्तम्भु but gloss बालकः । ३.A इंडिवि; Pण्डहि। ४. APपंपय । ५.Pवरहि। ६.Pबरस । ७.A पर; Pणिव । ८. A तावह पमिल । ९.AP सहउबणाम: K सहेवपणामें but gloss And T सहेवणामें सहेतुकनाम्नोयामम् । १..A पगंपन्य। P तडि गंधा ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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