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महापुराण
[५८..१३. १४.
घत्ता-तमहाराह जलणकुमारोह जिससफारिस __णीसलहिं पल्लियफुल्लहिं अमरिंदर्हि जयकारिस ||१३||
संपण्णदुवालसतवविध पुणु भासइ गणहरू इंदभूइ। अवरु वि समदमसंजमपसस्थि वित्त अणंतजिणणाहति स्थि । मुप्पहपुरिसुत्तमगुणणिहाणु सुणि मागहेसह रिबलपुराणु । पंचसयधणुण्णयमणुयदेहि
इह जंबुदीवि सुरदिसिविदेहि । उत्तंगु काउ दिण्णायणाउ गंदररि महाबलु णाम राउ | पयपालहु अरिहहु पय णवैथि रिसि जायज तणयहु रज्जु देवि । मई णउ गद्धी सल्लें अणेण तणुचाउ करिवि सल्लेहणेण । उप्पण्णउ कयद है षिइवियप्पि सुर सहसारइ सहसारकप्पि । अहारहसायरपरिमियाउ किंवपणमि सुरवरू सुद्धभाउ | घत्ता-इह भारहि पयडियसुहवाहि पोयणपुरि चिरु होवउ ॥
वसुसेणउत्तियमणयेणउ णरवइ वइरिकयंत ॥१४॥
१.
पत्ता-तमका नाश करनेवाले अग्निकुमार देवोंने जिन शरीरका संस्कार किया। निःशल्प तथा पुष्पवर्षा करते हुए देवोंने उनका जय-जयकार किया ॥१३॥
सम्पूर्ण द्वादश प्रकारके तपकी विभूति इन्द्रभूति गणधर कहते हैं, शम-दम और संयमसे प्रशस्त अनन्तनाथ तीर्थंकरके तीर्थमें एक और वृत्तान्त हुआ। सुप्रभ और पुरुषोत्तमके गुणसमूहसे युक्त, नारायण और बलभद्रका पुराण हे मागधेश, सुनो। इस जम्बूद्वीपमें जहां मनुष्यके शरीरको ऊँचाई पांच सौ धनुष है ऐसे पूर्वविदेहके नन्दपुरमें दिग्गजको तरह नादवाला उत्तुंग शरीर महाबल नामका राजा था। वह प्रजापाल (नामक) अहत्के परणोंमें प्रणाम कर, अपने पुत्रको राज्य देकर मुनि हो गया । किसी भी प्रकार ( किसी भी मूल्पपर ) उसने मतिको शल्यसे अवरुद्ध नहीं होने दिया। सल्लेखनाके द्वारा शरीरका त्याग कर, जिसमें दस प्रकारके कल्पवृक्ष हैं, ऐसे सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। उसको आयु अठारह सागर प्रमाण यो। उस सुखभाक्याले देवका में क्या वर्णन करूं?
पत्ता-इस भारतवर्ष में, पहले जिसमें शुभपथ प्रकट है ऐसा पोदनपुर नगर था। उसमें स्त्रीके मनको चुरानेवाला और शत्रुओंके लिए यमके समान राजा था ॥१४॥
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९. A सक्कारिख । १४. १. P has before this: जिणतणु पणवैप्पिणु गज सुरिंदु, धरणेदु परिषु खगिदु चंदु; K gives ___it in margin in second hand । २. A संपुष्णु । ३. AP उत्तुंग काठ । ४. AT मइ गावद।
५. AP दहविवियणि । ६. र तृयमण ।