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________________ ३२७ -५८. १३, १३ ] महाकवि पुष्पदन्त विरक्षित धत्त]--अणुसकुलु हत्ययहाभलु जि तिs दिलु गिरिविखउ । मयमसदं भयणासप्तई विडवणु पहुं पई रक्खि ।।१२।। णिम्मुक्कसाय जिणेसरासु जाया गणहर पण्णास तासु । पुवंगधराह.सहासु वुत्तु तं तिउणउं पाइहिं दुसयजुत्त । चालीससहस एक्कूण भणमि | पंच जि सयाई भिक्खुयेहं गणमि । अत्तारि सहस तिपिण जि सयाई । अवहीहराई पालियक्याई। यसहसई केषलदसणाई मणपज्जवणाणमहागुणाई । तेत्तियई जि मयविदावणाह वसुसमयई सिद्धविठठवणाहं । अदेव सहासई एक्कु लक्खु संजमधारिहि सपणोणचक्खु । सावयह लक्ख दो चट भणंति सावइहिं महाका किर गणंति । गवसंख तियेसगण बंदणिज्ज संखेन तिरिक्त णमंसणिज्ज । संमेयहु सिहरु समारुहेवि छेइल्लु माणु दढयर धरेवि।। विच्छिण्णउं किरियाजालु सयलु ओसारिवि वेउ तिदेहणियलु । गल मोक्खहु अमवासाणिसियहि गुरुजोयम्भासे तहिं जि दियहि । रिदुसमसाहसाई सउत्तराई सिद्धाई रिसिहि पणमामि ताई। पत्ता-अणओंसे व्याप्त यह समस्त संसार हे प्रभ, आपने जिस प्रकार हाथपर रखा हा आँवला, उसी प्रकार समस्त संसारको देखा है और मदमत्त तथा काममें आसक्त त्रिभुवनकी रक्षा की है ॥१२॥ १३ उन जिनेश्वरके कषायसे रहित पचास गणधर थे। पूर्वागधारी एक हजार कहे गये हैं, तीन हजार दो सौ वादी कहे गये हैं। उनतालीस हजार पांच सौ भिक्षुक थे, चार हजार तीन सौ व्रतोंका पालन करनेवाले अवधिज्ञानधारी थे। केवलज्ञानी पाच हजार, मनःपर्ययज्ञानी महागुणसे युक्त पांच हजार । विक्रियाऋद्धिसे सिद्ध मुनि आठ हजार थे। संयम धारण करनेवाली और ज्ञाननेत्र आयिकाएं एक लाख आठ हजार थीं। महाकवि श्रावक दो लाख गिनते हैं और धाविकाएँ चार लाख। वन्दनीय देवगण असंख्यात था और नमन करने योग्य तियन संख्यात थे। सम्मेद शिखरपर आरोहण कर तथा दृढ़तासे अन्तिम ध्यान धारण कर उन्होंने समस्त क्रिया-जालको विच्छिन्न कर दिया। देव तीन शरीरोंकी श्रृंखलाको हटाकर, चैत्र कृष्णा अमावस्याके दिन, गुरुयोगमें छह हजार एक सौ मुनियोंके साथ सिद्धिको प्राप्त हुए, मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ। ६. A इत्यातला । ७. AP सयछु । ८, AP पई पह। १३. १. A सहासेवकूण । २. AP सिक्खुबह । ३. वसुसहस सिद्ध; P वसुसहसई सिद्ध । ४. AP "वेउ. स्वणाह। ५. A सणाणचक्षु । ६. P onits गण । ७. A अमवासहो णिसाहे; P अमयासाणिसोहि । ८. सदुत्तराई।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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