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________________ -५८. १६.३] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ३२० १५ मुहइंदोहामियसरयचंद महएवि तासु णामेण गंद। रइरहसपसाहियजोवणाई __ अच्छंति जाम बिण्णि वि जणाई। तामायठ जियपडिवक्खेदंड णामेण चंडसासणु पयंहु । अपरावयकरथिरथोरबाहु राण उ सुहडग्गैणि मलयणाहु । वसुसेणे माण्णउ परममितु राहु कतहि लग्गउ तासु चित्तु। अवलोइवि गंदाहि पार वयणु विडु जूरह बोहल्लंतक्यणु । अवलोइवि णंदहि खीणु मझु विडु कुप्पइ तप्पा हिययमझु । विड सह९ ण सकिन मयणयाणु अवहरिवि णंद गउ णिया ठाणु । वसुसेणे दइयषिओइएण असमर्थे विहि णित्तेइएण | बर्ड लइउ पासि गासियसरासु सेयंसणामजोईसरासु। अप्पट इंडिच छंडिस ण माणु संमोहजणणु बद्धउं णियाणु । पत्ता-सवचरणहु खंचियकरणहु ६ फलु एति मग्गमि ॥ परयारिउ सो खलु वइरिउ मारिवि परभवि वग्गमि ।।१५|| तह रहिरवारिधाराइ जेव इय बंधिवि दुट्ट णियाणसल्लु संभूयउ तहिं सहसारसगि परिहवपडु धोवमि होउ तेव । मुउ सो काले मोहबुगिल्लु । जिणतबह लेण माणियसमग्गि । अपने मुखचन्द्रसे शरदचन्द्रको पराजित करनेवाली उसकी नन्दा नामकी महादेवी थी। जिनका यौवन रतिरससे प्रसाधित है, ऐसे वे दोनों जबतक वहां थे तब जिसने शत्रुपक्षके दण्डको जीत लिया है, ऐसा चण्डशासन नामका राजा आया। ऐरावतको सूड़के समान स्थिर और स्थूल हाथोंवाला तथा सुभटोंमें अग्रणी वह मलय देशका राजा था। वसुषेणने उसे अपना मित्र मान लिया। उसकी पत्नी से उसका चित्त लग गया। नन्दाका सुन्दर मुख देखकर अवनतमुख वह दुष्ट पीडित हो उठता है। मन्दाका क्षीण मध्य भाग देखकर, उसके हृदयका मध्यभाग द्ध और सन्तप्त होता है। यह विट कामबाणको सहन करने में समर्थ नहीं हो सका, वह ( चण्ड) नन्दाका अपहरण कर अपने स्थानपर चला गश। पत्नोस वियुक्तं, असमर्थ और भाग्यसे निस्तेज बसुपेणने कामदेवका नाश करने वाले श्रेयांस नामका योगोश्वर के पास व्रत ग्रहण कर लिया। अपनेको दण्डित किया । परन्तु मान नहीं छोड़ा। उसने मोह उत्पन्न करनेवाला निदान बांधा। __घत्ता-'इन्द्रियों को दमित करनेवाले तपश्चरणका मैं इतना ही फल मांगता हूँ कि दूसरे जन्ममें परस्त्रोका अपहरण करने वाले उसे मारकर मैं नृत्य करू।" ॥१५॥ १६ जिस प्रकार उसको रक्तरूपी जलधारामे मैं अपने पराभवके पटको धो सकूँ, वैसे ही वह दुष्ट यह निदान-शल्य बांधकर और मोहमस्त होकर समय आनेपर मर गया। जिन तपके १५. १. AP मुहयंदा । २. A पडिबक्सबंदुः पहिवक्सदंदु । ३. A चंडयासणपयंडु । ४. A मुहडम्गामि । ५. AP सूरइ । ६. A मोहल्लं भवयणु ; P उल्लुल्लवयणु । ७. A सहिषि । ८. ब्रउ । १६. १. A मोहंघगिल्लु Init T मोहजलाः । ४२
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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