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महापुराण
[ ५७.१.१
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आइचाहु मोहमयमद्दणु हूयल मेरुणामु बहु अंदणु। णियकुलसंतइबेलिवराहें अमयवईहि तेण गरणाहे। हुल सपुग्णविहवेणुदामें
धरणु चविवि सुर मंदरु णामें। आयपणह विरएप्पिणु अंजलि एयह सयलहं भगमि भवावलि । सीइसेणु करि सिरिहरु सुरवरु रस्सिबेठ रवितेड वरामक। वजाउहु अहमिदु पियार संजयंतु दय करउ भडारड । महुर रामदत्त वि जाणिज्जा भक्खराहु पुणु देस भणिजइ । सिरिहर पुणु वसुसमदिवि अणिमिसु रयणमाल अञ्चुयसुरु सहरिसु । पुणु विजेयंकु धि आइचाहट जाउ मेरु पुणु मुणिगणणा। वाणि छणबिहु वेरुलियप्पहु जसहर काविहइ रूय॑प्पहु। रयणाहु अनुयउ विहीसणु सकरवसुमडणारउ भीसणु । सिरिधामठ सुठे बंभणिवासर णिउ जयंतु फणिवइविवरासर। पुणु मैदरणिगणसंजुत्तर सिरिभूइ वि फणि चमरि पवुत्तर । पत्ता-कुक्कुडफणि चोत्थयणरयरुहु अजयर पंकप्पहदुहित ॥
समरुझाड सत्समपुहविभत अहि पुणु सथैलदुक्खगहिउ ॥३१॥
मोहमदका मर्दन करनेवाला दिवाकर नामका देव उसका मेरु नामका पुत्र हुवा। और वह धरणेन्द्र ज्युत्त होकर अमृतवती रानीसे, अपनी कुलसन्ततिरूपी लताके श्रेष्ठ वर तथा सम्पूर्ण वैभवसे उद्दाम उस राजाका मन्दर नामका पुत्र हुआ। ( आप लोग) अंजलि जोड़कर इन सबकी भवावलिको सुनिए । सिंहसेन हाथी, श्रीधर सुरवर, रश्मिवेग अर्कप्रभघदेव (रवितेज), २वायुष सर्वार्थसिद्धि में प्यारा अहमेन्द्र और संजयन्त आदरणीय ( गणधर ) दया करें। मधुराको रामदप्ता जाना जाये, फिर उसे भास्कर देव कहा जाता है, फिर श्रीधरा, फिर पाठवें स्वर्गमें देक, रस्नमाला सहलार स्वर्गमें अच्युतदेव, विजयसे युक्त वीतभय और आदित्यप्रभ देव, तथा मेरु नामका गणधरोंका स्वामी हुआ। वारुणीका जीव, पूर्णचन्द्र वैडूर्यदेव यशोधरा, कापिष्ठ स्वर्गमें रुचकप्रभ रत्नायुध अच्युत विभीषण, दूसरी शर्करा भूमिका भीषण नारकी, श्रीधर्मा, ब्रह्मस्वर्गका देव, जयन्त, विवरों में आश्रित रहनेवाला धरणेन्द्र, फिर गुणियोंके गणोंसे संयुक्त मन्दर गणषर हुआ। श्रीभूति भी (सत्यघोष) सर्प चमर कहा गया ।
पत्ता-कुक्कुट सर्प, चौथे नरकका नारकी, अजगर, पंकप्रभानरकका नारकी, शवर, सासर्वे नरकका नारकी, सांप, फिर समस्त दुःखोंको नण करनेवाला ॥३१॥ -.- -. २१. १. AP अणमिसु । २. A विजयंतु वि । ३. A बेरुविय । ४. A भूयप्पह । ५. AP सुरु । ६. A
मंदरमुणिगण; P मंदरि मुणिगण । ७. A पस्या गरइ पुर। ८. A सम्वपुरन ।